अमृत काल की हार्दिक बधाई। आपको बेशक ये शब्द थोड़ा नया लग रहा होगा लेकिन जल्दी ही आपको अन्य नामों की तरह इसकी भी आदत पड़ ही जायेगी। क्यों सरकार ने वर्तमान समय को अमृत काल का नाम दिया है। सरकार ये मान चुकी है कि किसानों की आय दोगुनी हो गयी है इस लिए उसने आय दोगुनी करने की बात बंद कर दी है और आय दोगुनी होने के बाद के समय को अमृत काल कहना शुरू कर दिया है। यदि नोटबंदी और कोरोना जैसी महामारी से उपजी अव्यवस्था में आपने अपना व्यापार अथवा कोई प्रिय जन खोया है तो उसका शोक करना बंद कर दें। अमृत काल में अमृत पीने की आनंद लें।
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रत्नशिखा टाइम्स चैनल कृषि पर आधारित है इस लिए यहां ज्यादातर कृषि विषयों पर ही चर्चा की जाती हैं। आज 2022-23 के बजट की समीक्षा प्रकाशित की जा रही है। यह समीक्षा बजट पारित होने के तीन दिन बाद की गयी है। आपसे पहले भी कहा जा चुका हैं कि हमारा संस्थान ब्रकिंग पर नही फॉलोअप पर यकीन करता है। हम घोषणाओं की चकाचौंध पर नही उनके क्रियान्वयन की समीक्षा करते हैं।
क्या आपने यह देखा ..?
हममें से ज्यादातर लोगों को बजट समझ में ही नही आता इस लिए आम आदमी बजट के समाचारों पर ज्यादा फोकस नही करता। बजट में सिर्फ आंकड़े होते हैं जिसे आम आदमी नही समझ पाता। हम आपको बिल्कुल सरल भाषा में इसे समझायेंगे। हमारी बात सुनकर बस आप यह सोचते जाइए कि जो मैं कह रहा हूं उसमें आपके हिस्सेे में सीधे तौर क्या आने वाला है। या यू समझें आपको क्या मिलने वाला है और आपको क्या चुकाना पड़ेगा।
इस साल के बजट में आपके लिए क्या खास है –
- आगामी सीजन में 163 लाख किसानों से 1208 लाख मैट्रिक टन गेहूं और धान की खरीदी का लक्ष्य है। वित्त मंत्री ने कहा कि एमएसपी मूल्य का 2.37 लाख करोड़ का भुगतान सीधे किसानों के खातों में किया जाएगा। हम आपको बता देें कि यह कोई नई बात नही है, ऐसा पहले से ही हो रहा है। सरकार ने एम.एस.पी गारंटी योजना पर कोई बात नही की। जिस मांग को लेकर किसान साल भर से आंदोलन कर रहे थे सरकार ने उस पर चुप्पी बनाकर रखी।
- सरकार नेे कहा कि, देशभर में रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जायेगा। यानि जो कीटनाशक मौजूदा समय में इस्तेमाल हो रहे हैं उनकी शामत आने वाली है। किसान अब प्राकृतिक तरीके से अपनी खेती को बचायेंगे।
- गंगा नदी के किनारे रेती में खेती करने वाले किसानों के लिए इस बजट में खुशखबरी है। लगता है सरकार गंगा नदी के नाम का इस्तेमाल बनाये रखना चाहती है। वित्तमंत्री ने कहा कि प्रथम चरण में गंगा नदी के पांच किलोमीटर चौड़े कॉरिडोर में आने वाले किसानों की जमीनों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- कृषि क्षेत्र में पीपीपी मोड में योजना शुरू की जाएगी, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के अनुसंधान विस्तार संस्थानों के साथ-साथ निजी एग्रोटेक प्लेयर शामिल होंगे।
- कृषि फसलों का आंकलन, भू दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन तथा किसान ड्रोन को बढ़ावा दिया जाएगा।
उक्त बिन्दुओं में से किसान भाई खुद तय करें कि बजट में ऐसी कौन सी बात की गयी है जिसमें उन्हे अमृत नजर आ रहा है। या यूं कहे कि सरकार जिस अमृत काल का ढिंढोरा पीट रही है दरअसल वह अमृत किसानों को किस रूप मेेें दिया गया है। सरकार ने अब किसानों की आय दोगुनी करनेे की बात करना बंद कर दिया है। अमृत काल का आगमन इस बात का स्पष्ठ संदेश है कि सरकार यह बात मनवाने पर आमादा है कि देश के किसानों की आमदनी दोगुनी हो चुकी है।
अब जानते हैं, बजट में कितनी धनराशि का प्राविधान किया गया है –
- – साल 2021-22 में यह 1,47,764 करोड़ रुपये था जिसे इस साल बढ़ाकर 1,51,521 करोड़ कर दिया गया है। यानि पिछले साल
- की तुलना में 3757 करोड़ रूपये ही बढ़ाये गये है।
- उधर, फसल बीमा योजना के लिए 15500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
- जबकिं उर्वरक के लिए सब्सिडी के तौर पर सरकार ने 2022-23 में 1,05,222 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान लगाया है। सरकार का मानना है कि इससे किसानों (थ्ंतउमत) को सस्ता खाद मिलने का रास्ता साफ होगा।
- हालांकि, सरकार इस साल भी इस पैसे को सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करने का निर्णय नहीं ले पाई। यानी सब्सिडी की यह रकम खाद कंपनियों को मिलेगी। किसानों को नही।
इसे भी देखें-
तो यह था इस साल का बजट किसान भाई समझेें कि इस बजट में उनके हिस्से में कितनी धनराशि या सुविधाएं आने वाली हैं। उन्हे क्या मिलेगा और क्या चुकाना पड़ेगा।
पीएम किसान सम्मान निधि के बजट में वृद्धि से किसानों को कोई फायदा नहीं
केन्द्र सरकार की एक चर्चित स्कीम पीएम किसान सम्मान निधि की बात कर लेते हैं। इसकी निधि में सरकार ने मामूली वृद्धि की है लेकिन किसानों को निजी तौर पर इसका भी कोई फायदा होने वाला नही है।
- सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम (च्ड ज्ञपेंद ैबीमउम) के लिए बजट आवंटन में थोड़ी वृद्धि करके बेसक अपनी पीठ थपथपा रही हो लेकिन जिस देश की अर्थ व्यवस्था 70 फीसदी कृषि पर आधारित हो वहां 3000 करोड़ की मामूली वृ़द्धि दाल में छौंका भर भी नही है।
- 2021-22 में पीएम किसान सम्मान निधि के लिए 65000 करोड़ रुपये का आवंटन था, जिसमें वृद्धि करके 2022-23 के लिए 68000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यानि 3000 करोड़ की मामूली वृद्धि इसमें हुई है।
- एक बात यहां पर और साफ कर देता हूं कि पीएम किसान सम्मान निधि के बजट में वृद्धि से किसानों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। क्योंकि किसानों को हर साल उतने ही जितने पहले मिलते थे यानि 6000 रुपये ही मिलेेंगे।
- मौजूदा समय में पीएम किसान योजना के करीब 11 करोड़ लाभार्थी हैं। किसानों को उम्मीद थी कि इस रकम में सरकार यूपी और पंजाब चुनाव को देखते हुए कुछ वृद्धि करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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बजट को कुछ यूं समझें-
- – आम बजट 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिए कुल आवंटन में केवल 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि फसल बीमा और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को सक्षम करने वाले आवंटन में भारी कमी की गई है।
- इतना ही नहीं, बजट में किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर भी पूरी तरह चुप्पी साध दी गई है, जबकि इस योजना की समय सीमा इसी वर्ष यानि 2022 है।
- देश में दलहन और तिलहन के लिए एमएसपी आधारित खरीद सुनिश्चित करने वाली पीएम-आशा (प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना) और एमआईएस-पीएसएस (बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन योजना) के आवंटन में भारी कमी की गई है। पीएम-आशा को सिर्फ एक करोड़ रुपये का आवंटन किया गया, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में इस मद पर 400 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
- इसी तरह एमआईएस-पीएसएस को 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो कि वर्ष 2021-22 में इसका संशोधित अनुमान 3959.61 करोड़ रुपये था। इस तरह इसके आवंटन में 62 प्रतिशत की कमी की गई है।
- – हम यह भी बता दें कि यह कटौती ऐसे समय में हुई है, जबकि किसान संगठनों की प्रमुख मांग है कि, फसलों की खरीद के लिए एमएसपी की गारंटी दी जाए। जिस पर सरकार ने इन संगठनों को भरोसा दिलाया कि एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा और इसी आश्वासन के बाद किसान संगठनों ने एक साल तक चला आंदोलन वापस लिया था।
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क्या कहती हैं स्वेता सैनी ?
आईसीआरआईईआर की सीनियर फेलो और भारतीय कृषि नीतियों पर शोध करने वाली श्वेता सैनी कहती है-
- पीएम-आशा के आवंटन में कमी के दो कारण हो सकते हैं। या तो सरकार यह अनुमान लगा रही है कि दालों और तिलहनों की कीमतें 2022-23 में भी महंगी बनी रहेंगी और एमएसपी पर नहीं बेची जाएंगी या दूसरा कारण यह हो सकता है कि पीएम-आशा अच्छा काम नहीं कर रही है, इसलिए इसे बंद करने की तैयारी की जा रही है। लेकिन इस पर संदेह तब खड़ा होता है, जब सरकार यह कह रही है कि वह एमएसपी के तहत खरीद करेगी और दूसरा पोषण सुरक्षा के बारे में भी बात कर रही है, तो फिर आवंटन क्यों कम किया गया है।
- – बजट दस्तावेज में खाद्य और पोषण सुरक्षा को लेकर विरोधाभासी बात दिखती है। यह दस्तावेज कहता है कि मिशन का उद्देश्य पोषण सुरक्षा के साथ इन फसलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए दलहन और पोषक अनाज पर विशेष जोर देना है। जबकि खाद्य और पोषण सुरक्षा के तहत आवंटन में 1540 करोड़ रुपये (संशोधित) से घटकर 1395 करोड़ रुपये हो गया है।
- इसके अलावा मिड डे मील , सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), आईसीडीएस आदि जैसी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए केवल 9 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, जबकि पिछले बजट में यह संशोधित अनुमान 50 करोड़ रुपए और इस योजना के लिए बजट में अनुमानित आवंटन 300 करोड़ रुपये था।
- सैनी कहती हैं, इसका मतलब साफ है कि सरकार दालों की खरीद और वितरण पर होने वाले खर्च का अनुमान नहीं लगा रही है
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) या फसल बीमा योजना के लिए आवंटन भी 15,989 करोड़ रुपये से घटाकर 15,500 करोड़ रुपये कर दिया गया।
- एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) के आवंटन में बढ़ोत्तरी की गई है। वित्त वर्ष 2022-23 में इसके लिए 500 करोड़ रुपये कर दिया गया है, पिछले साल यह 200 करोड़ रुपए था।
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