प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (14सितम्बर) मंगलवार को अलीगढ़ में 1500 करोड़ की लागत से बनने वाले डिफेंस कॉरिडोर का उद्घाटन किया। इसी के साथ उन्होंने अलीगढ़ में ही अटल को हराने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी की आधारशिला भी रखी। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में योगी सहित यूपी की विकास यात्रा का भी जिक्र किया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी के इस दौरे को सियासी तौर पर काफी अहम माना जा रहा है।
योगी सरकार ने राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर यूनिवर्सिटी बनाने का फैसला लिया है। राजा महेंद्र प्रताप एक जाट नेता थे, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए जमीन दान दी थी. यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड के मुताबिक, राजा महेंद्र प्रताप ने 1929 में 1.221 हेक्टेयर (3.04 एकड़) की जमीन 2 रुपये सालाना दर से लीज पर दी थी। महेन्द्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी कोल तहसील के गांव लोधा और गांव मूसेपुर करीम जरौली में 92 एकड़ से अधिक जमीन पर बनेगी। इस यूनिवर्सिटी से अलीगढ़ प्रखंड के करीब 395 कॉलेज संबद्ध होंगे।
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अलीगढ़ में जो डिफेंस कॉरिडोर बना है वो कारोबारियों और उद्यमियों के लिहाज से काफी अहम है। 1500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार इस कॉरिडोर में 19 इंडस्ट्रियल यूनिट्स होंगी। सरकार ने डिफेंस कॉरिडोर को अलीगढ़, आगरा, कानपुर, चित्रकूट, झांसी और लखनऊ से जोड़ने की योजना बनाई है। अलीगढ़ के लिए 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। डिफेंस कॉरिडोर से देश को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
कौन हैं राजा महेन्द्र प्रताप सिंह
‘अफगानिस्तान में भारत की अंतरिम सरकार के गठन का ऐलान करने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम से यूनिवर्सिटी बनाये जाने की आधार शिला रख दी गई है।’ कौन हैं राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, आइए जानते हैं। सन 1915 में राजा ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था और अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान कर दिया था।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह मुरसान के राजा थे। इतिहास में इस बात का जिक्र है कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को जमीन दान की थी, लेकिन उन्हें सम्मान नहीं दिया गया।
किसान आंदोलन की वजह से इस बार पश्चिमी यूपी में भाजपा के विरोध में माहौल बन रहा है। यहां जाटों की बड़ी आबादी है। अलीगढ़ में जाट राजा की स्मृतियों को संजोये रखने का प्रयास भाजपा के लिए शुभ संकेत हो सकता है।
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बता दें कि पश्चिमी यूपी में 150 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 120 पर जाट वोट बड़ा उलटफेर करने की ताकत रखता है। यह फैसला भी तब लिया गया है जब किसान आंदोलन के माध्यम से जाट और मुसलमान एक साथ आते दिख रहे हैं और यूपी में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। साल 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे और तब इन दोनों के बीच काफी दूरियां आ गई थीं, जिसका फायदा भी भाजपा को मिला था। उस समय जाट पूरी तरह भाजपा के पक्ष में दिखायी दे रहा था। किन्तु अब स्थितियां बिलकुल इसके उलट हैं।
उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को इलेक्शन में हराने वाले जाट राजा के नाम पर विश्वविद्यालय की नींव रखते हुए ये संकेत दिया है कि भाजपा के एजेण्डे में जाट समुदाय पहले पायदान पर है।
चुनाव से पहले पश्चिमी यूपी के अलीगढ़ में मोदी और योगी की उपस्थिति जाटों को ‘संतुष्ट’ करने का प्रयास माना जा रहा है। बात करें राजा महेंद्र प्रताप सिंह की तो जिनके नाम पर यूनिवर्सिटी की नींव रखी गई है, उन्होंने साल 1957 में लोकसभा के चुनाव में मथुरा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। उस समय उनके सामने अटल बिहारी वाजपेयी थे, जो कि जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। उस समय अटल जी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि 2019 में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि वे राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर राज्य का विश्वविद्यालय बनाएंगे। राजा महेंद्र प्रताप अपने इलाके में आर्य पेशवा के नाम से भी जाने जाते थे और उन्होंने एक सेना भी बनाई थी जिसका नाम “आजाद हिंद फौज” रखा गया था। यह आजाद हिंद फौज वह नहीं है जिसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने बनाया था। 1915 में अफगानिस्तान में रहकर महेंद्र प्रताप ने भारत की अंतरिम सरकार बनाई थी। राजा महेंद्र प्रताप जिन्ना के घोर विरोधी माने जाते थे।
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एक बार महात्मा गांधी को पत्र लिखकर उन्होंने जिन्ना की तुलना जहरीले सांप से की थी। राजा महेंद्र सिंह ने ही अलीगढ़ में विश्वविद्यालय खोलने के लिए अपनी जमीन दान की थी, ये चिन्ताजनक है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के किसी भी कोने में उनका नाम अंकित नहीं है। इसी कारण यहां पर एएमयू यानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के लिए भी काफी मांग उठती रहती है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए रास्ता निकाला है।
प्रदेश सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाब में महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय बनाने का निर्णय लिया है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2019 में राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर अलीगढ़ में एक नया विश्वविद्यालय स्थापित करने का भरोसा दिलाया था।सीएम योगी ने 14 सितंबर, 2019 को विश्वविद्यालय के निर्माण की घोषणा की थी। अब इसकी नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर को रख दिया है। उस समय कोल तहसील के लोढ़ा और मुसईपुर गांवों में विश्वविद्यालय के लिए भूमि भी प्रस्तावित की गई थी।
जिला प्रशासन ने 37 हेक्टेयर से अधिक सरकारी भूमि देने का निर्णय किया था। इसके अलावा अन्य 10 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई थी। राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर एक विश्वविद्यालय की मांग 2018 में उठी थी, जब हरियाणा के बीजेपी नेताओं ने जाट राजा के नाम पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम बदलने का आह्वान किया था। उस वक्त इस बात पर जोर दिया गया था कि महेंद्र प्रताप ने ‘एएमयू के लिए भूमि दान’ की थी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक सभा में बताया था कि महाराजा महेंद्र प्रताप ने ब्रिटिश प्रशासन को बहुत बड़ी चुनौती दी थी।
वह अलीगढ़ के राजा थे। इससे पहले स्थानीय राजनेताओं ने भी इसे लेकर मांग उठाई थी। हालांकि, योगी सरकार ने 2019 में राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर अलीगढ़ में एक नया विश्वविद्यालय स्थापित करने का भरोसा दिलाया था। इस विश्वविद्यालय को बनाने की घोषणा बीजेपी सरकार बनने के एक साल बाद ही कर दी गई थी, लेकिन अब निर्माण में तेजी लाने का आदेश है ताकि 2022 से पहले यह विश्वविद्यालय बनकर तैयार हो जाए।
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राजा महेंद्र प्रताप कौन थे, उनके विषय में जानना भी जरूरी है। महेन्द्र प्रताप का जन्म एक दिसम्बर 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था जो मुरसान रियासत के शासक थे। यह रियासत वर्तमान उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में थी। वे राजा घनश्याम सिंह के तृतीय पुत्र थे, जब वे तीन साल के थे तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया।
साल 1902 में उनका विवाह बलवीर कौर से हुआ था जो जिन्द रियासत के सिद्धू जाट परिवार की थीं। विवाह के समय वे कॉलेज की शिक्षा ले रहे थे। राजा महेंद्र सिंह के बारे में बताया जाता है कि मैसर्स थॉमस कुक एंड संस के मालिक बिना पासपोर्ट के अपनी कम्पनी के पी एंड ओ स्टीमर द्वारा राजा महेन्द्र प्रताप और स्वामी श्रद्धानंद के ज्येष्ठ पुत्र हरिचंद्र को इंग्लैंड ले गए।
उसके बाद जर्मनी के शासक कैसर से उन्होंने भेंट की। वहां से वो अफगानिस्तान चले गए। फिर बुडापेस्ट, बुल्गारिया, टर्की होकर हेरात पहुंचे जहां अफगान के बादशाह से मुलाकात की और वहीं से 1 दिसम्बर 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की।जिसके राष्ट्रपति वे स्वयं थे और मौलाना बरकतुल्ला खां प्रधानमंत्री बनाये गये।
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यहां स्वर्ण-पट्टी पर लिखा सूचनापत्र रूस भेजा गया। उसी दौर में अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया तभी वे रूस गए और लेनिन से मिले, लेकिन लेनिन ने कोई सहायता नहीं की। साल 1920 से 1946 तक विदेशों में भ्रमण करते हुए विश्व मैत्री संघ की स्थापना की। फिर 1946 में भारत लौटे। यहां सरदार पटेल की बेटी मणिबेन उनको लेने कलकत्ता हवाई अड्डे गईं। इसके बाद वो संसद-सदस्य भी रहे। 26 अप्रैल 1979 में उनका देहांत हो गया।