लखनऊ, (नेहा बाजपेयी)। हिन्दुस्तान में श्राद्ध के दौरान लोग कौवों (crow) को खाना खिलाते हैं। लोक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से उनके दिवंगत पूर्वजों को तृप्ति मिलती है। हलांकि टीवी सीरियल और सिनेमा ने इसके अंधविश्वास के पहलू पर ज्यादा फोकस किया जब कि इसका वैज्ञानिक, सामाजिक तथा पशुपक्षियों के प्रति लोगों के कर्तब्य की भावना का पहलू छिपा रह गया। आईए जानते हैं कि इसके पीछे का अन्य लॉजिक क्या है..?
भारत को ऐसे ही विश्वगुरू नही कहा जाता था। इसके सामाजिक ढांचे का ताना बाना इस प्रकार से बुना गया था जिसका संबन्ध हर जाति, समुदाय, पशुपक्षियों, पेड़-पौधों, नदियों, तालाबों और सरोवरों का अस्तित्व एक दूसरे के साथ जुड़ा था। जिन्हे जोड़े रखने के पीछे एक परंपरा या लोकमान्यता को गढ़ा गया। कालांतर में इसकी लोकमान्यता का विस्तार हुआ लेकिन उसके मूल उद्देश्य को लोग भूलते गये।
श्राद में कौवों को भोजन कराने के पीछे का दर्शन
भारत में हिन्दी महीने के अनुसार जो श्राद्ध पक्ष का समय होता है दरअसल वही समय कौवों (crow) का ब्रीडिंग सीजन होता है। इस दौरान वह ज्यादातर समय अपने घोसलों में बिताते हैं। अपने अंडों को सेते हैं और जब उनसे बच्चे बाहर आ जाते हैं तो उनकी परवरिश करते हैं। इस दौरान वह भोजन ढूंढने के लिए दूर तक नही जा सकते इस लिए हमारे पूर्वजों ने उनके लिए भोजन की व्यवस्था श्राद्ध के रूप में की।
कौवों को भोजन कराने से मिलता है पुण्य
लोकमान्यता के अनुसार श्राद्ध में कौवों (crow) को भोजन कराने से पुण्य मिलता है। बुजर्गों द्वारा डिजाइन की गयी हर सामाजिक व्यवस्था के पीछे कोई न कोई सटीक लॉजिक जरूर होता है। ब्रीडिंग पीरियड में मनुष्य से लेकर पशु पक्षी तक एकांतवास करते हैं। ऐसे में वह ज्यादा श्रम नही कर सकते। कौवों का समय भी पहले घोसला बनाने, फिर अंडे देने, उन्हे सेने और इसके बाद बच्चों की परिवरिश में जाता है। ऐसे में उन्हे आसान भोजन की जरूरत होती है जो यह सामाजिक लोक परंपरा के द्वारा प्राप्त होता है।
श्राद में कौवा भोजन लेकर दौड़ जाता है
दूसरे सीजन मे कौवा (crow) जहां भोजन का श्रोत होता है वहां बैठकर खाता है। लेकिन श्राद्ध सीजन में उसकी प्रकृति बदली-बदली रहती है। वह उड़ान भरता हुआ आता है और चोंच में भोजन का टुकड़ा लेकर उसी रफ्तार से वापस उड़ जाता है। दरअसल वह उस भोजन को उसके घोसलों में मौजूद बच्चों को देने जाता है। ये सत्य है कि श्राद्ध में कौओं (crow) को भोजन कराने से पुण्य मिलता है। हमारा उद्देश्य है कि आप लोकमान्यता के साथ इसके व्यवहारिक और वैज्ञानिक पहलू को भी जानते रहें।
♣ यह भी पढ़ें→ मृतक आश्रितों को नौकरी देने के मामले में पशुपालन विभाग की पीठ थपथपाई गयी
कौवों के संदर्भ में कुछ प्रचलित मत
- कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौओं को देवपुत्र भी माना गया है।
- कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है।
- कौए को भोजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती।
- कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है।
- जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है।
- कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है।
- कौआ लगभग 20 इंच लंबा, गहरे काले रंग का पक्षी है जिसके नर और मादा एक ही जैसे होते हैं।
- कौआ बगैर थके मीलों उड़ सकता है।
- सफेद कौआ भी होता है लेकिन वह बहुत ही दुर्लभ है।
♣ यह भी पढ़ें→ ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के आवास पर धरने का ऐलान
(श्रोत- संयुक्त निदेशक पशुपालन डॉ. जयकेश पाण्डेय के सहयोग से )
नोटः यह जानकारी आपको कैसी लगी, कृपया वॉट्सएप या मेल के द्वारा जरूर सूचित करें। यदि आपके पास लोक परंपरा के पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्यों से संबन्धित कोई समाचार या लेख है तो हमें प्रेषित करें। ताकि उस ज्ञान को अन्य लोगों तक पहुंचाया जा सके। वॉट्सएप नम्बर- 9369019969, मेल- ratnashikhatimes@gmail.com
देखेंः Patrakar Satta पर ताजा अपडेट– https://patrakarsatta.com/