वह कातिल है पर फ़रिश्ता नज़र आता है,
आंखों से अभी भी बच्चा नज़र आता है।
गवाहों ने तो गुनहगार साबित कर दिया,
मुंशिफ को अब भी सच्चा नज़र आता है।
कभी बचपन में बसती थी जन्नत जहां पे,
वही झोपड़ा आज कच्चा नज़र आता है।
बुजुर्गों को दौलत से ज्यादा सम्भालो,
उनसे ही हर घर गुलिस्तां नज़र आता है।
पीठ पीछे छुरा घोंपता वह ‘उजागर,’
आगे से जो शख्स अच्छा नज़र आता है।
बयां करते रहे ताउम्र हम हक़ीकत,
उन्हें दर्द मेरा बस किस्सा नज़र आता है।
उसने कभी जिम्मेदारी तनिक न संभाली ,
हर चीज़ में सिर्फ हिस्सा नज़र आता है।
(‘उजागर का सफर’ से संकलित)