लखनऊ, (ब्यूरो )। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव के बीच छिड़े घमासान ने उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को दुविधा में ड़ाल दिया है। इस घमासान के चलते सूबे के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव चुनावी समर में अपने को बड़ा साबित करने के लिए अलग -अलग रथयात्रा निकाल रहे हैं। जिसके तहत ही मंगलवार को शिवपाल सिंह यादव ने मथुरा से सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा और अखिलेश यादव ने कानपुर से समाजवादी विजय रथयात्रा की शुरुआत की। वही दूसरी तरफ सपा से जुड़े मुस्लिम समाज के लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इस दोनों के बीच छिड़े घमासान को लेकर आखिर वह करें तो क्या करें?
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फ़िलहाल सपा के पारम्परिक कहे जाने वाले इस वोट बैंक में फैली सियासी अनिश्चितता ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सहित अन्य दलों की बांछें खिला दी हैं। ये राजनीतिक दल सपा के पारम्परिक वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में लग गए हैं। सपा कुनबे में मचे घमासान के चलते मुस्लिम समाज में फ़ैली अनिश्चितता का लाभ उठाने के लिए बसपा नेताओं ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देने की तैयारी की है। ओवैसी भी सपा से खफा मुस्लिम नेताओं को अपने साथ जोड़ने की जुगत में लग गए हैं। समाजवादी पार्टी की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच घमासान का नुकसान फिर अखिलेश को उठाना पड़ सकता है। इसलिए अखिलेश यादव को अपने चाचा से संघर्ष करने के बजाए उनके साथ चुनावी गठबंधन करना चाहिए। अखिलेश जब ओम प्रकाश राजभर से चुनावी गठबंधन के लिए वार्ता कर रहे हैं तो फिर उन्हें शिवपाल से परहेज क्यों हैं? ये सवाल करने वाले राजनीतिक समीक्षक कहते हैं कि यादव और मुस्लिम समाज चाहता है कि अखिलेश यादव अपने चाचा के साथ अपने रिश्ते ठीक करें वरना मुस्लिम समाज सपा से दूरी बना लेगा।
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उत्तर प्रदेश की 403 विधान सभा सीटों में से 147 ऐसी हैं जहां मुसलमान मतदाता हार जीत का फैसला करने की सियासी कुव्वत रखता है। इस वोटबैंक के भरोसे ही सपा राज्य बड़ी राजनीतिक ताकत बनी है। सूबे के जातीय आंकड़ों के अनुसार, रामपुर में सबसे अधिक मस्लिम मतदाता हैं। रामपुर में जहां मुसलमान मतदाताओं का प्रतिशत 42 है। मुरादाबाद में 40, बिजनौर में 38, अमरोहा में 37, सहारनपुर में 38, मेरठ में 30, कैराना में 29, बलरामपुर और बरेली में 28, संभल, पडरौना और मुजफ्फरनगर में 27, डुमरियागंज में 26 और लखनऊ, बहराइच व कैराना में मुसलमान मतदाता 23 प्रतिशत हैं। इनके अलावा शाहजहांपुर, खुर्जा, बुलन्दशहर, खलीलाबाद, सीतापुर, अलीगढ़, आंवला, आगरा, गोंडा, अकबरपुर, बागपत और लखीमपुर में मुस्लिम मतदाता कम से कम 17 प्रतिशत है। उक्त जिलों में निर्णायक भूमिका में होने के बाद भी बीते विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव से हुए संघर्ष के चलते सपा 47 सीटों पर ही सिमट गई थी। इसके बाद भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कोई सबक नहीं सीखा और शिवपाल सिंह यादव के साथ गठबंधन नहीं किया। जबकि शिवपाल सिंह ने हर मंच से यह कहा कि वह सपा से गठबंधन चाहते हैं लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया। यह जानते हुए कि इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, बदायूं, कन्नौज, फर्रुखाबाद, कानपुर देहात, आजमगढ़, गाजीपुर जौनपुर, बलिया आदि जिलों में शिवपाल सिंह यादव का प्रभाव है, उक्त जिलों के यादव और मुस्लिम समाज के लोग शिवपाल सिंह यादव को मानते हैं फिर भी अखिलेश यादव ने शिवपाल से दूरी बनाए रखी तो अब शिवपाल सिंह यादव ने भी अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए रथयात्रा शुरू कर दी।
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अब मुलायम सिंह यादव कुनबे के अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के अलग -अलग रथयात्रा निकालने से मुस्लिम समाज असमंजस में हैं अब वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि ऐन चुनाव के समय वह अपना नया सियासी मसीहा कहां से खोज के लाय? मुसलमानों के बीच पनपी इस असुरक्षा को भांप कर मायावती ने आगामी चुनावों में बड़ी संख्या में मस्लिम समाज उम्मीदवार खड़ा करने का संकेत दिया है। समाजवादी पार्टी में मचे आपसी घमासान का उसके पारम्परिक मुसलमान मतदाता पर दरअसल असर क्या हो रहा है? इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्र नाथ भट का कहना है कि सपा से जुड़े मुस्लिम मतदाता अब अखिलेश और शिवपाल के बीच बट रहे हैं। जिस मुस्लिम मतदाताओं ने बीते विधानसभा चुनावों में अखिलेश का साथ दिया था वह भी अब उनसे नाता तोड़ रहे हैं। इसकी वजह अखिलेश यादव के कार्य करने का तरीका है। अखिलेश अब किसी की सुनते नहीं हैं, वह किसी से अब आसानी से मिलते भी नहीं हैं। अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से भी वह दूरी बनाए हुए हैं। इसके चलते पुराने लोग पार्टी से दूर होते जा रहे हैं। पार्टी के प्रति लोगों से बदल रहे माहौल को अखिलेश यादव ने नहीं भापा तो यह तय है कि सूबे का मुस्लिम समाज अखिलेश यादव के साथ देने को लेकर सोचेगा। क्योंकि अब मुस्लिम समाज किसी के साथ आँख बंद करके समर्थन देने के मूड में नहीं है, वह उसी के साथ खड़ा होगा जो उसके पक्ष में बोलेगा, उसका साथ देगा ।