गायों और भैंसों को खुरपका रोग काफ़ी प्रभावित करता है। यह काफी तेज़ी से फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जिसके कारण गायों और भैंसों के दूध उत्पादन में काफी कमी आ जाती है। ऐसे में इस बीमारी के रोकथाम के लिए गायों और भैंसों का टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आप पशुपालन करते हैं, तो सबसे पहले खुरपका रोग (Khurpaka Rog) का कारण, लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके जरूर पढ़ लें।
खुरपका रोग का कारण
इस रोग का मुख्य सूक्ष्म कीट हैं, जो आंखों से नहीं दिखते हैं. इस कीट को विषाणु या वायरस भी कहा जाता है। खुरपका रोग का विषाणु अब तक ज्ञात सभी विषाणुओं से आकृति में छोटा है. इसका आकार 7 से 21 मिलीमीटर माइक्रोन का होता है। इस विषाणु के 7 प्रकार और अनेक उप प्रकार हैं। हमारे देश में खुरपका रोग आमतौर पर ए, ओ, सी एवं एशिया- 1 द्वारा फैलता है।
खुरपका रोग का लक्षण
अगर किसी पशु को खुरपका रोग लग जाए, तो उससे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कभी-कभी इस रोग से पशु की मौत भी हो सकती है, तो आइए आपको इस रोग के लक्षण की जानकारी देते हैं –
- पशुओं को तेज बुखार आना
- पैरों में सूजन आना
- खुरों के बीच में छोटे-छोटे दाने उभरना और फिर छल्ले बन जाना।
- अगर रोग बढ़ता है, तो यह छल्ले फलने लगते हैं और जख्म का रूप ले लेते हैं।
- खुर में जख्म होने की वजह से पशुओं को चलने में तकलीफ होती है।
- पैरों के जख्म में कीचड़ और मिट्टी लगने से कीड़े लगने लगते हैं।
- गर्भवती पशुओं में गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है।
- कई बार पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है।
खुरपका रोग से बचाने का तरीके
ध्यान दें कि गायों और भैंसों को होने वाले खुरपका रोग का कोई इलाज नहीं है, इसलिए पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराएं।
खुरपका रोग के टीकाकरण की जानकारी
देश के पीएम मोदी द्वारा 11 सितंबर 2019 को 5 वर्षों के लिए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया। इसके तहत सभी मवेशियों को 6 महीने के अंतराल पर एफएमडी (FMD) टीका लगाने की योजना बनाई गई है। इसके साथ ही हर पशु का वैक्सीनेशन कार्ड बनता है। इससे पशुओं को लगने वाले टीके का सही ब्यौरा मिलता है। इसके अलावा पशुओं की पहचान के लिए उनके कान में टैग लगाया जाता है। टैगिंग के बाद पशु उत्पादकता एवं स्वास्थ्य के लिए सूचना नेटवर्क (इनाफ) की वेबसाइड पर रजिस्ट्रेशन जरूर जकाएं। यह एक ऐसी एप्लिकेशन है, जो पशु प्रजनन, पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं पर वास्तविक समय पर विश्वसनीय आंकड़ों को कैप्चर करने में सहयोग देता है। इनऑफ की वेबसाइट पर रजिट्रेशन होना अनिवार्य है।
टीकाकरण के समय सावधानी
अगर आपको पशु को टीका लगवाना है, तो उससे पहले कई महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना होगा-
- टीके का तापमान 2 से 8 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहे।
- बड़े जानवरों और सुअरों को 2 मिली लीटर और छोटे जानवरों को 1 मिली लीटर खुराक दी जाए।
- डेढ़ इंच वाली 16 या 18 गेज की सुई गर्दन वाले भाग में लगाएं।
- वैक्सीन को सीरिंज में भरने से पहले उसे अच्छी तरह हिलाएं।
- 30 से 60 सेंकड तक टीका लगे भाग को सहलाएं और उपयोग के बाद उस सुई को सावधानी से नष्ट करें। इसके साथ ही उस सुई को फिर से उपयोग न करें।
- आधी उपयोग की गई दवाई को सावधानी पूर्वक डिस्पोज करें।
- पशु के कान में लगे टैग को स्कैन करें और टीके की जानकारी इनऑफ पर अपडेट करें।
- उन जानवरों को टीका न लगाएं, जिनकी उम्र 4 माह से कम हो और तापमान अधिक हो या बीमार है।
- टीके के बाद पशु के असाधारण व्यवहार का ध्यान रखें।
- टीकाकरण सुबह या शाम को ही होना चाहिए।
- जो पशु 4 से 5 माह के हैं, उन्हें पहले टीकाकरण के 1 माह बाद FMD टीका का बूस्टर डोज अवश्य लगाएं।
- ध्यान रखें कि इस बीमारी का इलाज नहीं है, सिर्फ नियमति टीकाकरण से पशुओं को बचाया जा सकता है।
कोरोना काल में विशेष सावधानी बरतें
दुनियाभर में कोरोना महामारी का दौर चल रहा है ऐसे में पशुओं को टीका लगाते समय कई बातों का ध्यान रखना होगा।
टीका लगाने वाले को मास्क, दस्ताने और एप्रन के साथ खुद को अच्छी तरह ढककर रखना चाहिए।
केवल स्वस्थ्य जानवरों का टीकाकरण करें।कुछ अन्य उपाय
- नीम एवं पीपल के छाल का काढ़ा बनाकर रोग प्रभावित पशुओं के पैर को दिन में 2 से 3 बार साफ करें।
- पैरों की सफाई कॉपर सल्फेट की घोल से करें।
- पानी में फिनायल मिलाकर पैरों को साफ करें।
- मक्खियों को दूर रखने वाले मलहम का प्रयोग करें।
- पशु चिकित्सक से परामर्श लें।
ध्यान देने वाली कुछ अन्य बातें
- रोग प्रभावित क्षेत्र से पशुओं को न खरीदें।
- रोग प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से दूर रखें।
- पशुशाला की नियमित रूप से सफाई करें।
- खुरपका रोग से मरने वाले पशुओं को खुला न छोड़ें।