नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क । चुनावी धांधली पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि वोट देने के किसी भी प्रयास या उसके खिलाफ झूठा मतदान अंततः कानून के शासन और लोकतंत्र को प्रभावित करता है।
उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को झारखंड के एक मतदान केंद्र पर दंगा करने के दोषी एक व्यक्ति के खिलाफ अपील खारिज करते हुए यह बात कही। अपने पिछले फैसलों पर टिप्पणी करते हुए, न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और श्री शाह की पीठ ने कहा कि वोट की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है ।
पीठ ने कहा कि मतदान प्रणाली का सार मतदाताओं को अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना होना चाहिए। इसलिए, बूथ या नकली वोट के लिए वोट करने के किसी भी प्रयास को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि यह अंततः कानून और लोकतांत्रिक कानून को प्रभावित करता है।
लोकतंत्र की मजबूती के लिए गुप्त मतदान जरुरी
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनते हुए अपनी टिप्पड़ी में कहा कि, लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए एक गुप्त मतदान की जरूरत है। लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में गोपनीयता की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में जहां प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मतदाता बिना किसी डर के अपना मतदान करें और अपने वोटों का खुलासा किया जाए। प्रताड़ित
स्वतंत्र चुनाव संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा
पीठ ने कहा कि लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं। चुनाव लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने का अंतिम तरीका है। किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जाएगा और न ही उसकी राष्ट्रीयता को बदलने के अधिकार से वंचित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 147 (हिंसा) के तहत दोषी पाए गए लक्ष्मण सिंह के एक आवेदन को खारिज कर दिया है। इसने कहा कि चूंकि सिंह को छह महीने की जेल की सजा के खिलाफ अपील राज्य को पसंद नहीं आई, इसलिए मामला वहीं बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि विधानमंडल के सदस्य द्वारा बल प्रयोग विवादास्पद है। (Input from Agency)