ऑनलाइन संगोष्ठी में कवियों ने बांधा समा
Published by Neha Bajpai
लखनऊ। मै तेरे लिए ज़ईफ़ी में भी बेक़रार होता , तेरे हुस्न का चमन भी जो सदाबहार होता. आरिफ महमूदाबादी की इस शेर को पढ़कर ऑनलाइन मुशायरे में जमकर वाहवाही बटोरी।
मौका था नवाब वाजिद अली शाह अख्तर अकादमी द्वारा ऑन लाइन संगोष्ठीके आयोजन का जिसमे शायरों ने अपनी ग़ज़ल सुनाकर कोविद 19 के गम का प्रयास किया। अकादमी के संस्थापक आरिफ महमूदाबादी की अध्यक्षता आयोजित कव्यगोष्ठी एवं मीशायरे में कवियों ने खूब अपने दिल के राज खोले। डॉ मख्मूर काकोरवी ने माँ के ऊपर भावुक कविता पढ़ते हुए आज की पीढ़ी को नसीहत देते हुए कहा – जो अपने वालिदैन का रखते नहीं ख्याल, खाते वही है ठोकरें दर-दर के सामने। सरवर मुज़फ्फ़रपुरी ने…रोज़ दुनिया चली आती है नया रूप धरे, रोज़ मै दिल की उमंगों को दबादेता हूँ । सुनाकर अपनी पीड़ा व्यक्त की. डॉ मंसूर हसन खां ने आज के हालत हुए शेर कुछ इस अंदाज में पढ़ा- कातिल भी बन गए है अमीराने शहर जब, फिर कैसे मेरे शहर में अमनो-अमान रहे. डॉ मुन्तज़िर कायमी ने- बेहिसी ने मेरी ग़ुरबत का गला घोंट दिया, कब्र पर फातिहाख्वानी को निवाले आये. सुनकर जमकर वाहवाही बटोरी। शायरा डॉ शैदा आज़मी ने अपने जज्बात कुछ इस अंदाज में बयां किये- काली-काली राते नागिन बनकर जिस्म से लिपटी है, वीराने में दीप जलाए बैठा एक पुजारी है. इंजीनियर शुमूम आरिफी ने कोविद -19 को ललकारते हुए कहा – सर उठाए है जो सर उनको झुकाना होगा, इस का ऐलान कोरोना की ये बीमारी है । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ मख्मूर काकोरवी, विशिष्ठ अतिथि डॉ शैदा आज़मी एवं सरवर मुज़फ्फ़रपुरी रहे। डॉ मुन्तज़िर कायमी और डॉ मंसूर हसन खां, उपाध्यक्ष के रूप में शामिल हुए । कार्यक्रम का संचालन अकादमी के जनरल सेक्रेटरी डॉ सरवत तक़ी ने किया।
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