(संकलन – शिखा रत्नाकर )
पेटुनिया (पेटुनिया x हाइब्रिडा) सोलेनेसी कुल का सदस्य है जो दक्षिण अमेरिकी मूल के पुष्पी पादपों की 20 प्रजातियों का वंशज है। इसका नाम फ्रांसीसी भाषा के शब्द पेटून से लिया है, जिसका अर्थ एक तुसी गोआसी भाषा में तंबाकू होता है। अधिकतर पेटुनिया द्विगुणी (2n=14) होता है। कुछ पेटुनिया सदाबहार हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर आजकल जिन संकर जातियों का उत्पादन किया जाता है और बेचा जाता है, वह ज्यादातर वार्षिक पौधे होते हैं।
यह सबसे लोकप्रिय फूलों में से एक है तथा यह फूल हर रंग में जैसे- गुलाबी, बैंगनी, पीला आदि रंगों में देखने को मिल जाता है, लेकिन इसका असली रंग नीला होता है। इसका फूल तुरही या फनल के आकार का होता है, जिसमें पांच जुड़े हुए या आंशिक रूप से जुड़ी हुई पंखुड़ियां और पांच हरे रंग के वाहृदल पाए जाते हैं। पेटुनिया मुख्यता प्राकृतिक परागित पौधा है, जो सर्दियों के मौसम में खिलता है तथा इसके सूक्ष्म आकार के बीज एक सूखे आवरण कैप्सूल में पैदा होते हैं। अपने इस सुंदर तुरही के आकार के फूलों के कारण पेटुनिया बहुत मशहूर फूल है।
भूमि
पेटुनिया उगाते समय मिट्टी का प्रकार कोई प्रतिबंधी कारक नहीं होता है, तथा यह बलुई दोमट से औसतन दोमट मिट्टी में अच्छी तरह विकसित हो सकता है। इन्हें अच्छी धूप तथा जल निकास तथा हल्की अम्लीय (पी.एच. मान- 6.0 से 7.0) मिट्टी पसंद है। अच्छी जल निकास वाली मिट्टी तथा पी.एच. मान- 5.5 से 6.0 वाली मिट्टी में उगने वाले पौधों पर तेज और गहरे रंग के फूल आते हैं।
जलवायु
उचित वृद्धि एवं विकास के लिए पेटुनिया को प्रतिदिन 5 से 6 घंटे सूर्य की रोशनी की आवश्यकता पड़ती है। आमतौर पर छाया की वजह से पौधों पर कम तथा निम्न गुणवत्ता रंग वाले फूलों का विकास होता है पेटुनिया मुख्यता सर्दियों का पौधा होने के साथ-साथ अधिकतर पेटुनिया को गर्म तथा औसत शुष्क जलवायु और धूप वाली गर्मियां पसंद आती हैं। बारिश के समय में फूल कम खिलते हैं तथा अधिकतर फूल खराब हो जाते हैं. इसके पौधे को 17 से 23 ˚C तक का औसत तापमान पसंद होता है। इन पौधों को 0˚C से 35 ˚C तक का तापमान सहन करने की क्षमता होती है।
प्रजातियां
पेटुनिया को फूलों के आधार पर विभिन्न भागों में बांटा गया है. इसकी कुछ प्रसिद्ध प्रजातियों के निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. पेटुनिया ग्रैंडिफ्लोरा
इस प्रजाति में सबसे बड़े फूल आते हैं जिनकी लंबाई 5 सेमी. तथा जिनकी पौधे की लंबाई 40 सेमी. (15 इंच) तक हो सकती है। आमतौर पर इसके सुंदर लहरदार फूलों को बारिश तथा हवा आदि से बचाना लाभप्रद होता है। इसमें कुछ प्रजातियां हैं जैसे कि-
शुगर डैडी – बैंगनी रंग के फूल खिलते हैं जो दिखने में सुंदर तथा आकर्षक लगते हैं।
रोज स्टार (पेटुनिया अल्ट्रा सीरीज)- फूल सफेद केंद्र वाले तथा रंग में गुलाबी पिंक धारीदार होते हैं।
2.पेटुनिया मल्टीफ्लोरा
इसके फूल पेटुनिया ग्रैंडिफ्लोरा से छोटे तथा पेटुनिया मल्टीफ्लोरा से बड़े आकार के होते हैं।
जातियां
कारपेट सीरीज- यह सघन जल्दी खिलने वाले 1.5- 2 इंच के विभिन्न प्रकार के रंगों के फूल वाली लोकप्रिय प्रजाति है।
प्राइम टाइम- फूल 2.5 इंच के सघन तथा समान रंग वाले आवरण की तरह होते हैं।
हैवियनली लैवेंडर – पौधे 12- 14 इंच के तथा फूल सघन गहरे नीले रंग के 3 इंच आकार के पाए जाते हैं।
3. पेटुनिया मिलीफ्लोरा
इसमें सबसे छोटे फूल आते हैं तथा इस प्रजाति को ग्रैंडिफ्लोरा के विपरीत बारिश से कम बचाना पड़ता है। इसमें लटकने वाले प्रकारों के साथ-साथ क्षैतिज रूप में उगने वाले प्रकार भी मिल सकते हैं जो मेड़ों के ऊपर लगाने के लिए उपयुक्त होते हैं।
जातियां
फेंटेसी- इसमें साफ-सुथरे सघन रूप के काल्पनिक गुलाबी रंग के फूल आते हैं जो देखने में काफी आकर्षक लगते हैं।
4.पेटुनिया फ्लोरीबुन्डस
इसमें ग्रैंडिफ्लोरा के आकार के फूल तथा और मल्टीफ्लोरा के पौधों की तरह मौसम सहिष्णुता होती है। आज के समय में आप फ्लोरीबुंडा पेटुनिया के छोटे तथा बड़े आकार के फूल पा सकते हैं।
1. सेलिब्रिटी – इसके फूल 2.5-3.0 इंच तक के हो जाते हैं तथा वर्षा सहिष्णुता भी पाई जाती है।
2. मैडनेस पेटुनिया- इसके फूल गहरे रंग के बड़े तथा आकार में 3 इंच तक के होते हैं, फूल बारिश के बाद अच्छी तरह खिलते हैं। फूल खिलने के समय बारिश प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
3. डबल मैडनेस पेटुनिया – इसके पौधों में सघन बड़े लगभग 3 इंच आकार के फूल गर्मियों में खिलते हैं. मैडनेस की तुलना में इसके फूल बरसात के बाद 1 घंटे में अपनी पुनः स्थिति में आकर खिल जाते हैं।
5. ट्रेलिंग पेटुनिया
पर्पल वेब
यह फैलकर चलने वाली प्रजातियों की सबसे पहली प्रकार है तथा इसके फूल बड़े (3 से 4 इंच), खिले हुए, गहरे गुलाबी रंग एवं बैंगनी रंग के होते हैं तथा गर्मी, सूखा और बारिश की क्षति के प्रति सहिष्णु होते हैं।
वेब
इस पर विभिन्न प्रकार के रंगों के फूल आते हैं. इसके पौधे मौसम सहिष्णु, रोग प्रतिरोधी और भारी खिलने वाले होते हैं।
पेटुनिया की नई प्रजातियां
ब्लू स्पार्क (कैस्कैडिया)- यह एक नीले रंग के फूल वाली भीनी महकदार प्रजाति है।
सुपरटुनिया सिल्वर – इसके फूल की नसें सफेद एवं बैंगनी रंग की पाई जाती हैं जो आकर्षक लगते हैं. यह मौसम के प्रति सहिष्णु एवं अधिक फूलने वाली प्रजाति है।
प्रिज्म सनशाइन- यह कोमल पीले रंग की ग्रैंडिफ्लोरा फूल के आकार की एवं मल्टीफ्लोरा फूल की तरह मौसम सहिष्णु प्रजाति है. इस प्रजाति को बीज से उगाया जाता है।
खेत की तैयारी
सामान्यतः इसकी खेती मैदानी क्षेत्र (खेतों) में ना करके, कंटेनर गमलों एवं हैंगिंग बॉस्केट्स में की जाती है. इसकी तैयारी के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।
पेटुनिया की बुवाई
पेटुनिया का प्रवर्धन, बीज तथा कटिंग दोनों विधियों के द्वारा किया जाता है परंतु बीज के द्वारा प्रवर्धन लोकप्रिय है। पेटुनिया की नर्सरी अक्टूबर-नवंबर महीने में बोई जाती है।
इसकी बुवाई के लिए अच्छी जल निकास वाली मिट्टी एवं अधिकांश कार्बनिक खाद की आवश्यकता होती है। गमलों में लगाने के लिए उसमें 20% कोकोपीट, 20% केचुआ खाद और नदी की रेत, गाय के गोबर की खाद, एवं 30% बागान की मिट्टी आदि मिलाकर एक मिश्रण तैयार कर गमलों की भराई कर देनी चाहिए। प्रत्येक गमले में एक चम्मच नीम की खली मिला देनी चाहिए जिससे फफूंद एवं बैक्टीरिया आदि से पौधों को बचाया जा सकता है।
बुवाई का सर्वोत्तम समय
इसे लगाने का सर्वोत्तम समय सर्दी का मौसम होता है। पेटुनिया शरद ऋतु के ठंडे मौसम में रोपे जा सकते हैं। जाड़े के अंतिम दिनों में या गर्मी के मौसम के लिए शुरूआती बसंत में भी लगाए जा सकते हैं।
मिट्टी का तापमान
इष्टतम मिट्टी का तापमान 10 से 35 ˚C अच्छा रहता है।
बीज बोने की सर्वोत्तम विधि
कंटेनर या गमले (नीचे की तरफ जल निकासी छिद्र) को 2:1 अनुपात के साथ मिट्टी में अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद के साथ भरे तथा फिर गमलों के केंद्र में दो बीज बोए. बीजों को किसी वाटरिंग कैन से पानी दे दें।
बीज से कैसे उगाएं?
अपनी पसंद और पेटुनिया के आधार पर हर गमले में दो-दो या ज्यादा बीज डाल सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि आमतौर पर ग्रैंडिफ्लोरा को फैलने के लिए ज्यादा जगह की आवश्यकता होती है। बीजों को मिट्टी के अंदर घुसाने के बजाय सतह पर छोड़ सकते हैं। पौधों की वृद्धि के शुरुआती चरणों के दौरान मिट्टी में हमेशा नमी होनी चाहिए, लेकिन बिल्कुल गीली नहीं होनी चाहिए, ताकि बीज अंकुरित हो सके। सड़ने से बचाने के लिए बहुत अधिक सिंचाई ना करें। पेटुनिया के बीजों को अंकुरित होने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, इसलिए पौधों को धूप वाली जगह पर रख सकते हैं। पेटुनिया की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह बाद कुछ छोटे पौधे दिखाई देने लगते हैं। पहले 8 से 10 दिनों के अंदर बीज अंकुरित हो जाएंगे और छोटे अंकुर दिखाई देंगे तथा दूसरे सप्ताह में एक छोटे फूल वाले पौधों के रूप में बढ़ने लगेंगे।
कलम से कैसे उगाएं?
कलम से पेटुनिया को उगाने का काफी प्रचलित तरीका है तथा यह विधि तेज एवं ज्यादा किफायती भी है। सबसे पहले मूल पौधे के रूप में किसी सुंदर स्वस्थ पेटुनिया का चुनाव कर सकते हैं। इस विधि में 4 इंच (10 सेमी.) की लंबाई वाली किसी छोटी बिना लकड़ी वाली कोमल शाखा को काट लेते हैं तथा बाद में कलम के नीचे 2 /3 हिस्से की सभी पतियों को हटा सकते हैं।
मिट्टी में कलम लगाने से पहले इसकी जड़ निकालने में मदद करनी होगी। ऐसा करने के लिए आमतौर पर कलम को पानी की एक गिलास में रखने की जरूरत होती है, जिसमें पौधे के आधे भाग तक पानी रहता है तथा इसमें कुछ दिनों बाद जड़ें निकलने लगती हैं। इसके लिये IAA जैसे रूटिंग हार्मोन का प्रयोग कर सकते हैं। जड़ निकलने के बाद कलम को फूलों वाले मिट्टी के मिश्रण और उचित वायु संचार के लिए प्लाइट या बजरी के साथ गमलों में लगाते है।
हैंगिंग बॉस्केट्स में कैसे उगाएं
गमलों या हैंगिंग बॉस्केट्स में लगाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि गमलों के नीचे छेद होना चाहिए, पानी की खराब निकासी की वजह से बीजों के पौधे को सड़ने से बचाने के लिए यह चरण महत्वपूर्ण होता है। ज्यादातर बेहतर जल निकास और वायु संचार के लिए गमलों के नीचे प्यूमिस, प्लाइट या बजरी डाल कर उसके ऊपर मिट्टी डालना अच्छा रहता है, बजरी के ऊपर मिट्टी होती है और इसके बाद बीज की बारी आती है। इस प्रकार उगाने के लिए 50% कोकोपीट, 30% केचुआ की खाद, 10% बर्मीकुलाइट एवं 10% परलाइट आदि मिलाकर हैंगिंग बॉस्केट्स में भर देनी चाहिए।
सिंचाई
आमतौर पर पेटुनिया में सप्ताह में 1 से 3 बार पानी डाल सकते हैं तथा इस बात का ध्यान रखें कि आप बीज से पेटुनिया उगा रहे हैं तो आपको बीजों में अंकुर निकालने में मदद करने के लिए ज्यादा पानी डालने की आवश्यकता पड़ सकती है। हैंगिंग बास्केट तथा अन्य कंटेनर आदि को उनकी मिट्टी की मात्रा के आधार पर दैनिक सिंचाई में लगातार कम या अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
खाद एवं उर्वरक
पेटुनिया की खेती के लिए अधिक कार्बनिक खाद वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है तथा इसके साथ केंचुआ खाद की अधिक मात्रा में भी आवश्यकता पड़ती है। ज्यादातर उत्पादक महीने में एक बार नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 10-10-10, 12-12-12 या 15-15-15 का संतुलित तरल उर्वरक डालकर बगीचे में पेटुनिया के तेजी से विकास में मदद करते हैं। उद्यान में उगे पेटुनिया के लिए संतुलित उर्वरक जैसे, 8-8-8, 10-10-10 या 12-12-12 के रूप में जुलाई के शुरुआत से मध्य में हर 2 से 3 सप्ताह में एक तरल उर्वरक का प्रयोग करना शुरू करना चाहिए।
पौधों से सूखे हुए फूलों को हटाना (डेड हेडिंग)
हर समय पर पेटुनिया के फूलों का आनंद उठाने के लिए पौधों से मरे हुए फूलों को हटाने की प्रक्रिया (डेड हेडिंग) का प्रयोग करते हैं। पौधों से सूखे फूल हटाने से हमारा मतलब पेटुनिया खिलने के मौसम में पुराने खिले हुए फूलों की कटाई करना या बीज वाले हरे कोशो को हटाना होता है। अगर हम पुराने खिले हुए फूलों या अक्सर पौधों के पीछे स्थित हरे कोशो को नहीं हटाते, तो पौधा बीज का उत्पादन करने के लिए अपनी ज्यादातर उर्जा उन्हें देना शुरू कर देगा तथा फूल खिलना बंद हो जाता है। यह एक सरल तकनीक है जो पेटुनिया के खिलने का समय बढ़ाएगी और साथ ही साथ बड़े और सुंदर फूल देगी।
प्रमुख रोग एवं रोकथाम
1.ग्रे मोल्ड और सॉफ्ट रॉट
यह रोग मुख्यता बरसात के मौसम में लगता है। पौधे एवं फूलों पर भूरे रंग के नरम धब्बे पड़ जाते हैं। रोकथाम के लिए वर्षा रोधी सहिष्णु फूल वाले पौधे का चुनाव करना चाहिए तथा रोग की अधिकतम मात्रा होने पर किसी एक सर्वांगी फफूंदीनाशक का प्रयोग करना चाहिए।
2. बोट्राइटिस ब्लाइट
यह रोग कम खिले फूलों पर आता है तथा प्रभावित फूल झुलसे हुए नजर आते हैं। इस रोग का फैलाव फूल गिरने पर स्वस्थ पौधों को काफी रोगी बना देते हैं। रोकथाम के लिए नियंत्रित वायुमंडल एवं कर्षण क्रियाएं का उपयोग करना चाहिए। मृदा में अधिक नमी नहीं रखनी चाहिए तथा रोग आने की दशा में किसी एक अच्छे फफूंदी नाशक का छिड़काव करना चाहिए।
3. फाइटोप्थोरा क्राउन रॉट
पौधे की शाखाएं ऊपर की ओर से सूखने लगती है तथा यह रोग पौधों में सबसे अधिक लगता है तथा वह जल्दी ही मर जाते हैं। अगर बाहर का मौसम शुष्क है तो इस रोग का फैलाव जड़ तक हो सकता है। एक वर्षीय पौधों में इस रोग के लक्षण पत्तियों एवं तनो पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं। रोकथाम हेतु मृदा एवं मिश्रण का पाश्चुरीकरण माध्यम होना चाहिए जो रोग मुक्त हो तथा प्रभावित पौधे को मिट्टी एवं गमलों से निकाल देना चाहिए। पत्तियों एवं तनो पर तथा बुवाई के समय मिट्टी में 7 से 10 दिन के अंतराल पर बरसात के मौसम में एक प्रभावी फफूंदी नाशक मैंकोजेव अथवा मेनेव का छिड़काव करते रहना चाहिए।
4. बौनापन (स्टंटिंग)
पौधा छोटा तथा मोटा बौनापन आकार का हो जाता है जिससे पौधे पर फूल या तो नहीं या फिर बहुत कम गुणवत्ता का फूल आता है। रोकथाम हेतु मृदा का पी.एच. मान- 7 रखना चाहिए। पानी में अधिक मात्रा में कैल्शियम और सोडियम की मात्रा का भी परीक्षण करते रहना चाहिए जो कि अधिक होने पर पौधे पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
5. विषाणु- इंपैक्टिस नैक्रोटिक स्पॉट वायरस
पौधों की पत्तियों पर खुरदुरे उभरे हुए उथले आकार के धब्बे बन जाते हैं जिससे पत्तियों की अपनी दैनिक क्रिया एवं प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन बनाने में बाधा उत्पन्न होती है। रोकथाम हेतु प्रभावित पौधे को निकालकर मिट्टी आदि में दबा देना चाहिए। इसका रोगवाहक थ्रिप्स होता है, जिसकी रोकथाम हेतु किसी कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए।
प्रमुख कीट एवं नियंत्रण
1. एफिड्स
ये छोटे नरम शरीर वाले कीड़े होते हैं, जो पौधों से पोषक तत्व एवं उनका रस चूसने का काम करते हैं। अधिक संख्या में एफीड पौधो एवं फूलों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। रोकथाम हेतु ठंडे पानी का छिड़काव करने से उनको पौधों एवं फूलों से विस्थापित किया जा सकता है। यदि संख्या अधिक है तो पौधों पर धूल या कीटनाशक धूल वाले कीटनाशी का छिड़काव करें। नीम का तेल तथा कीटनाशक साबुन एवं बागवानी तेल एफिड्स के नियंत्रण के लिए प्रभावी पाए गए हैं। इसके अलावा ‘डायटोंमेसियस अर्थ’ एक गैर विषैला कार्बनिक पदार्थ है जो एफीडस को मार देता है तथा इसका प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज बनाने के लिए पौधों को फूल खिलने के समय इसका प्रयोग ना करें।
2. कैटरपिलर
यह एक सुंडी होती है, जो जून एवं जुलाई माह में पौधों में फूल की कलिका को खाती है। इस कीट से प्रभावित पौधों पर छोटे काले धब्बे एवं पत्तियों एवं कलियों में छेद बना दिए जाते हैं जो फूल बनाने की क्रिया में फूलों को काफी नुकसान पहुंचाता है। रोकथाम के लिए एक प्रभावी सर्वांगी कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए।
फूलों का आना एवं उनकी तुड़ाई
बुवाई के लगभग 35-50 दिनों के बाद फूल आना शुरू हो जायेंगे। पूरी तरह से खिले हुए फूलों को तोड़कर बाज़ार में बेंचा जा सकता है. इसके फूलों का प्रयोग गुलदस्ता बनाने के लिए भी किया जा सकता है।