लखनऊ, (एस.वी.सिंह उजागर)। किसान और सरकार के बीच तीन कृषि कानून के लेकर चले आ रहे विवाद के बीच मोदी सरकार द्वारा बिल वापसी की घोषणा के बाद सोमवार को लोकसभा में इन नए कृषि कानूनों की वापसी की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू की गयी। इसे लोकसभा में रखा गया जहां बिना बहस के ये कृषि बिल वापसी के लिए पास कर दिए गये। इसके बाद राज्यसभा में भी बिल वापसी की प्रक्रिया बिना बहस के ही पास हो गयी।
अब इस बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजा जाना है, जहां राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये तीन बिल रद्द मानें जाएंगे। मोदी सरकार ने अपनी घोषणा के अनुसार बिलों की वापसी का किसानों को जो वादा किया था वो पूरा कर दिया है। नए तीन कृषि बिलों को लेकर किसान कर रहे थे आंदोलन बता दें कि बीते करीब एक साल से अधिक समय से किसान इन कृषि बिलों का विरोध कर रहे थे और इसको लेकर आंदोलन कर रहे थे।
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बिल वापसी को लेकर किसान लम्बे समय से कर रहे आंदोलन
किसानो के एक साल तक चले लम्बे आंदोलन के बाद केन्द्र सरकार को झुकना पड़ा और अािखिर में बिल वापस लेना पड़ा। पिछले दिनों प्रकाशपर्व पर पीएम मोदी ने इन कृषि बिलों को वापस लेने की घोषणा कर दी थी। इधर किसान संगठन के अध्यक्ष राकेत टिकैत ने कहा था कि जब तक ये कृषि बिल पूरी तरह से संवैधानिक रूप से खत्म नहीं हो जाते उनका आंदोलन जारी रहेगा। अब चूंकि इन कृषि बिल कानूनों की संवैधानिक प्रक्रिया जारी है।
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होना शेष
तीनों विवादित कृषि कानूनों की वापसी और विपक्ष का हंगामा मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार तीनों विवादित कृषि कानूनों की वापसी से संबंधित विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया। बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होना शेष हैं
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्ष के हंगामे के बीच इसे सदन के पटल पर रखा। विपक्ष के हंगामे के बीच यह बिल लोकसभा से पास हो गया। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस विधेयक पर सदन में चर्चा की मांग की है। विपक्ष के हंगामे के कारण सदन को स्थगित कर दिया गया। लोकसभा ने विपक्ष के हंगामे के बीच तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी कृषि विधि निरसन विधेयक 2021 को बिना चर्चा के ही मंजूरी दी है। राज्यसभा में भी इन कृषि बिल की वापसी के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है।
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संक्षिप्त में जाने क्या थे तीन कृषि बिल जिन पर था विवाद
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 इस विधेयक को लेकर सरकार का कहना था कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है। किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे। निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे। लेकिन किसानों को डर था कि सरकार इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध देना चाहती है और एमएसपी पर फसल की खरीद खत्म कर देना चाहती है। वहीं किसानों का मनाना था कि इस कानून के जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट मिल जाएगी और बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं।
2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना था कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है। इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा। किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर थे। किसानों को डर था कि इस विधेयक की आड में निजी कंपनियां उन पर दबाव डालकर उनका शोषण करेंगी।
3. आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020 इस विधेयक के अनुसार कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी। कोई कितनी भी सीमा में उपज को संग्रह करके रख सकता है यानि स्टाक कर सकता है। ऐसा होने पर इस बिल से उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी। सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट। यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा था।
सरकार कानून में साफ लिखती है कि वह सिर्फ युद्ध या भुखमरी या किसी बहुत विषम परिस्थिति में रेगुलेट करेगी। सिर्फ दो कैटेगोरी में 50 प्रतिशत (होर्टिकल्चर) और 100 प्रतिशत (नॉन-पेरिशबल) के दाम बढने पर रेगुलेट करेगी नहीं, बल्कि कर सकती है कि बात कही गई थी। इसे लेकर किसान, सरकार से नाराज थे। किसानों को डर था कि व्यापारी या कंपनी कम कीमत पर किसानों से उपज खरीदकर स्टाक कर लेगी और अधिक मुनाफा कमाएगी। एक तरीके से उनका आर्थिक रूप से शोषण किया जा सकता है।
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