लखनऊ, (एस.वी.सिंह उजागर)। पशुपालन विभाग में निदेशक की कुर्सी फूलों का गुलदस्ता कम काजल की कोठरी ज्यादा बनती जा रही है। इस पर जो भी बैठता है उसके कपड़ों पर कालिख लगना तय माना जाता है। नये निदेशक डिजीज कन्ट्रोल एवं फार्म डॉ.पीके सिंह अभी अपना चार्ज ठीक से संभाल भी नही पाये हैं उनके विरोध में विभागीय अधिकारियों के स्वर मुखर होने सुरू हो गये हैं। आलम यह है कि कई अधिकारी डीपीसी से पहले उनके पिछले कार्यों का पुलिंदा उजागर करने के लिए विभिन्न माध्यमों की तलाश में लग गये हैं।
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राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो चुका पशुपालन विभाग अपने कामों के लिए कम बल्कि अपने कारनामों के लिए अधिक जाना जाता है। यहां निदेशक की कुर्सी पर बैठने वाला कोई बिड़ला अधिकारी ही होगा जिसके खिलाफ किसी न किसी मैटर को लेकर जांच न चल रही हो।
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निदेशक प्रशासन एवं विकास डॉ. इन्द्रमनि व संयुक्त निदेशक मानकीकरण डॉ. जयकेश पाण्डेय समेत आधा दर्जन अधिकारियों पर अलग-अलग मामलों को लेकर जांच की तलवार लटक रही है। विभागीय जांच के लपेटे में कई पूर्व निदेशकों के नाम भी हैं।
डॉ. प्रमोद कुमार सिंह ने बीते सोमवार को नये निदेशक डिजीज कन्ट्रोल एवं प्रक्षेत्र का कार्यभार संभाल लिया है। डीपीसी के बाद उनकी परमानेंट नियुक्ति भी तय मानी जा रही है। सूत्रों की माने तो डॉ. सिंह के लिए यह कुर्सी काटों का ताज साबित होगी।
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डॉ. प्रमोद के सामने कई तरह की हैं चुनौतियां
विभागीय सूत्रों की माने तो नवनियुक्त निदेशक डिजीज कन्ट्रोल के सामने एक नहीं कई चुनौतियां हैं। विभाग में पशुचिकित्सकों व अन्य स्टाफ की बेहद कमी है। ऐेसे में उनके द्वारा बेहतर इलाज देने की बात को उनके अधीनस्थ अधिकारी सिरे से खारिज कर रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर प्रदेश के कई जनपदों के अधिकारियों ने बताया कि ऐसे 30 प्रतिशत से ज्यादा अस्पताल हैं जहां बिजली ही नही है। कई अस्पतालों में पानी और सौचालय तक की व्यवस्था नही है। पशुचिकित्साधिकारियों के पास सरकारी फोन तक नही हैं। एक-एक चिकित्सक के पास 10 से ज्यादा गौशालाएं हैं ऊपर से हर रोज माननीयों का आना जाना ऐसे में पशुओं को कितना बेहतर इलाज मिल पायेगा यह रामभरोसे ही है।
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खरीद फरोख्त पर लगी रहेगी सबकी नजर
पशुपालन विभाग में खरीद फरोख्त को लेकर पिछले दिनों मीडिया में खूब समाचार उछला। अपनी बचाने और दूसरे की फसाने में यहां के अधिकारी खूब माहिर माने जाते हैं। हलांकि डॉ.पीके सिंह खुद भी कागजों के माहिर खिलाड़ी हैं लेकिन जब कम समय में अच्छी परफारमेंस देने का दबाव हो तो जल्दबाजी में कई ऐसे निर्णय होना स्वभाविक है जिनकी तलाश विरोधियों को रहती है। सूत्रों का कहना है कि उनके कुर्सी पर बैठने के साथ-ही विरोधियों ने उनके पिछले कार्यों का पुलिंदा उच्चाधिकारियों को पार्सल करने की पूरी योजना बना ली है।
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प्राथमिकता वाले कार्यों की बनाई जा रही सूची
डॉ.पीके सिंह ने निदेशक डिजीज कन्ट्रोल एवं प्रक्षेत्र के अंडर में आने वाली सभी फाइलों उनके पास लाने तथा प्राथमिकता वाले कार्यों की सूची बनाने के निर्देश अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दे दिये हैं। पिछले निदेशकों का कार्यक्लाप और उनका हस्र डॉ. पीके सिंह के सामने हैं। चूंकि वह निदेशालय से सटे मण्डल कार्यालय में पहले से बैठते आये हैं इस लिए वह यहां के ज्यादातर अधिकारियों और कर्मचारियों के स्वभाव और कार्यशैली से वाकिफ़ हैं।
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उत्साह और स्फूर्ति से लवरेज डॉ. सिंह के पास मात्र 7 महीने का कार्यकाल है ऐसे में वह शासन और प्रशासन के आला अधिकारियों को खुश रखने के साथ-साथ योगी जी की महत्वाकांछी गौवंश संरक्षण योजना को लेकर कितने खरे उतरेंगे यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। लोगों का कहना है कि उनकी तैनाती के बाद गुलदस्ता थमाने वालों के हांथों में फूलों के बीच छुपे कांटो की परख यदि डॉ. पीके सिंह ने अभी से कर ली तो 7 माह का कार्यकाल उनका आसानी से कट सकता है।
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