लखनऊ, (एस.वी.सिंह उजागर)। पश्चिम बंगाल की तर्ज पर यूपी में भी चुनावी हिंसा की शुरुआत हो चुकी है। लखीमपुर में पांच किसान मरे या छै, फिर किसानों ने कितने और किसको मारा यह तो मरने वालों के घरों में पसरे मातम से पता चल ही जायेगा यदि कुछ नही पता चलेगा तो यह कि यह क्यों हुआ और किसने किया।
2020 में यका-यक बंगाल और असम जल उठा था। पूरे देश का मीडिया बंगाल की हिंसा परोस रहा था। हिंसा कौन कर रहा था और कौन करवा रहा था यह पूरे देश में किसी को नही पता। वहां चुनाव था और जैसे ही चुनाव संपन्न हुआ नयी सरकार बनी वहां हिंसा के समाचार भी खत्म हो गये।
2022 में यूपी और पंजाब समेत तीन अन्य राज्य उत्तराखण्ड, मणिपुर और गोवा में चुनाव होने हैं। विगत कुछ दिनों से इन राज्यों में हिंसा के समाचार भी बढ़े हैं। हरियाणा पंजाब और दिल्ली के बाद यूपी के गोरखपुर, कानपुर और लखीमपुर में हिंसा और प्रतिहिंसा की आग लगाई जा चुकी है। बयान चाहे सरकार की तरफ से दिए जा रहे हों या विपक्ष की ओर से सब में हिंसा को उकसाने की मंशा साफ देखी जा सकती है।
यानि एक बात तो तय हो गयी कि चुनाव बिना हिंसा के संपन्न नहीं होंगे। हिंसा और प्रतिहिंसा के बाद बनने वाले समीकरणों से किसका कितना फायदा और नुकसान होगा मीडिया हाउसिस और विभिन्न दलों के नेता बंद कमरों में यही आंकलन और आंकड़ा जुटाने और समझने का प्रयास कर रहे हैं।
केन्द्रीय ग्रह राज्यमंत्री अजय मिश्रा का सभाओं में यह कहना कि ‘वह मंत्री के अलावा कुछ और भी हैं उनके बारे में पता कर लीजिए, ये मुट्ठी भर लोग उनका कुछ नही कर पायेंगे।‘
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यह बयान किसानों को विरोध के लिए उकसाने का पर्याप्त मसाला कहा जा सकता है। अजय मिश्रा के बेटे मोनू मिश्रा द्वारा किसानों की भीड़ के सामने जिग-जैग में गाड़ी चलाना और विरोध प्रदर्शन के लिए खड़े किसानों पर गाड़ी चढ़ा देना प्रदेश को हिंसा की आग में झोकने के लिए काफी है।
एक वीडियो किसानो का भी वायरल हो रहा है जिसमें किसान एक निहत्थे को लाठी डंडो से पीट रहे हैं यह वीडियो असम में मोइनुल की हत्या जैसा ही है। मोइनुल के वीडियो में कुछ पुलिस वालों ने उसे डंडो से पीट-पीट कर मार डाला और लखीमपुर में कुछ तथाकथित किसानों ने भी वैसा ही किया।
अब सबके पास एक दूसरे पर दोश मढ़ने के लिए वीडियो हैं और आरोपों का पुलिंदा। अन्य घटनाओं की तरह इसका अंत क्या होगा यह क्यों और कैसे शुरू हुआ यह सच्चाई देश की जनता के सामने कभी आने वाली नही हैं।
मुख्यमंत्री योगी ने लखीमपुर की घटना पर दुःख जताया और बयान दिया कि इसकी जांच होगी और दोषियों को बख्सा नही जायेगा। इस बयान में मरने वालों के प्रति संवेदना कम आंदोलनकारियों के लिए धमकी ज्यादा है। गोरखपुर में जब मनीष गुप्ता को पुलिस ने पीट-पीट कर मार डाला तो वहां के एसपी का पहला बयान मनीष गुप्ता के दौस्तों के खिलाफ ही था और बहुत डराने वाला भी।
लखीमपुर घटना के बाद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का बयान आता है कि ‘ जो इस अमानवीय नर संहार को देखकर चुप है, वो पहले मर चुका है। लेकिन हम इस बलिदान को बेकार नही होने देंगे। किसान सत्याग्रह जिंदाबाद- राहुल गांधी।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा- कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को भाजपा सरकार के गृह राज्यमंत्री के पुत्र द्वारा, गाड़ी से रौंदना घोर, अमानवीय और कू्रर कृत्य है। उ.प्र. अब दंभी भाजपाईयों का जुल्म और नही सहेगा। यही हाल रहा तो उत्तर प्रदेश में भाजपाई न गाड़ी से चल पायेंगे, न उतर पायेंगे।‘
प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या का घटना पर खेद जताने की बजाय यह ट्विीट- लखीमपुर के सर्वांगीण विकास हेतु उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने 165 परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया।
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उक्त चारो बयान में ऐसा कुछ नही हैं जिसे जनता को समझने में दिक्कत हो। मुख्यमंत्री योगी, राहुलगांधी, अखिलेश यादव और केशव मौर्य क्या कहना चाह रहे हैं जनता को किस तरह का मैसेज देना चाह रहें है बड़ी आसानी से समझा जा सकता है।
पांच राज्यों में चुनाव हैं, किसी न किसी दल की वहां सरकार बनेगी ही। नेताओं के बयान से साफ लग रहा है कि शांति का मुखौटा लगाकर समाज में जो अशांति के बीज बोये जा रहे हैं इसकी फसल की परिणिंति हिंसा के अलावा कुछ और हो ही नही सकती। चुनाव पहले यही हाल बंगाल और असम का भी था। (लेखक- रत्नशिखा टाइम्स के संपादक हैं )