यूपी पशुपालन विभाग की अतिहिमीकृत केन्द्र/राज्य वीर्य उत्पादन योजना क्या है ? इस योजना के क्या उद्देश्य हैं और पशुपालन किसान इसका किस प्रकार से लाभ ले सकते हैं ? जानने के लिए पढ़िए पूरा आर्टिकल।
मुख्य बिन्दु
- अतिहिमीकृत वीर्य उत्पादन केन्द्र पर अच्छी नस्ल के साड़ों को रखकर उनसे से वीर्य का उत्पादन करना
- वीर्य का उत्पादन कर विशेषज्ञों द्वारा उसका परीक्षण करने के उपरान्त स्ट्राज में भर कर एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा तरल नत्रजन में सुरक्षित रखना।
- तरल नत्रजन में वीर्य को कई वर्षो तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
- अतिहिमीकृत वीर्य संतति परिक्षण में लाभदायी है।
- उत्तर प्रदेश में तीन अतिहिमीकृत वीर्य उत्पादन केन्द्र है। जिन पर वीर्य उत्पादन हो रहा है।
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उद्देश्य
- एक सांड से एक बार में प्राप्त वीर्य से अधिक गायों कोकृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। जबकि प्रकृति गर्भाधान द्वारा एक सांड से एक ही पशु को गर्भाधान किया जा सकता है।
- प्राकृतिक रूप से सांड़ द्वारा गर्भाधान करने पर कई प्रकार की बीमारी स्थानान्तरित हो जाती है। जबकि कृत्रिम गर्भाधान द्वारा इन बीमारियो से पशुओं को सुरक्षित रखना मुख्य उद्देश्य है।
- अतिहिमीकृत वीर्य द्वारा प्रति पशु गर्भाधान का खर्च कम हो जाता है।
- अतिहिमीकृत वीर्य द्वारा दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में यह सुबिधा कम खर्चे में उपलब्ध कराना।
- कमजोर /छोटी loja virtual नस्ल के पशुओं को आसानी से गर्भित कराया जा सकता है जो मादा पशु प्राकृतिक प्रजनन के समय सांड का भर सहने में सक्षम नही है।
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योजना से अपेक्षित लाभ
- पशुपालक को कम खर्चे में कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा उसके द्वारा पर उपलब्ध करायी जाती है।
- अच्छी नस्ल के सांड़ों के वीर्य को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जाता है। तथा एक सांड़ सेएक बार में उत्पादित वीर्य से लग भग 300-400 तक स्ट्राज तैयार हो जाती है। जिसे तरल नत्रजन में सुरक्षित करजनपदों में वितरित किया जाता है।
- वीर्य संतति परीक्षण में भी उपयोगी है एवं विलुप्त हो रही प्रजतियों के वीर्य को सुरक्षित रखा जा सकता है।
- उत्तर प्रदेश में पशु प्रजनन नीति का पालन करने में अतिहिमीकृत वीर्य उत्पादन केन्द्रो की उपयोगिताहै। जिससे प्रजनन नीति के अनुसार केन्द्रो पर साड़ों का पालन एवं उनके द्वारा वीर्य उत्पादित स्ट्राज का वितरण आसानी से किया जाता है।
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