आर.टी.ऑनलाइन डेस्क
देश में तिलहनी फसलों का उत्पादन (Oilseed production) 2 साल में ही करीब 50 लाख टन बढ़ गया है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक साल 2018-19 में देश में इसका 315 लाख टन प्रोडक्शन था, जबकि यह 2020-21 के तीसरे अग्रिम अनुमान में 365 लाख टन हो गया है।
ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि तिलहन उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि के बावजूद खाद्य तेलों के दाम आसमान पर क्यों हैं? उत्पादन में वृद्धि के बावजूद सोयाबीन और सरसों का दाम (Mustard price) अपने उच्चतम स्तर पर है। सोयाबीन (Soybean) ऑनलाइन मार्केट में 8,131 रुपये प्रति क्विंटल तक के रेट पर पहुंच गया है।
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर के मुताबिक खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन महज 30 फीसदी है। इसलिए उत्पादन में वृद्धि के बावजूद वह बाजार में मूल्य को नियंत्रित नहीं कर पाता। हमेशा 70 फीसदी वाला हिस्सा भारी पड़ता है। तेल का इंटरनेशनल मार्केट (International market) हमारे यहां दाम को प्रभावित कर देता है। आयात पर अधिक निर्भरता की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में बदलाव का असर खाद्य तेल की घरेलू कीमत पर भी पड़ता है. लेकिन इस बार दाम में वृद्धि का अनुपात काफी तेज है।
प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि
ठक्कर के मुताबिक भारत में खाद्य तेलों का दाम इंटरनेशनल मार्केट में तय हो रहा है. आबादी की वजह से घरेलू मांग में वृद्धि हुई है। यही नहीं प्रति व्यक्ति खपत में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। खाद्य तेलों का खर्च करीब सात साल पहले 600 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति माह था। जो अब बढ़कर 900 ग्राम तक पहुंच गया है। तला भुना ज्यादा खाने और बाहर की चीजों पर निर्भरता की वजह से ऐसा हुआ है।
तिलहनी फसलों को और बढ़ाने की जरूरत
कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि जब तक हम तिलहन उत्पादन में वृद्धि नहीं करेंगे तब तक न तो किसानों का भला होगा, न उपभोक्ताओं का और न देश का। उत्पादन में वृद्धि से किसानों की आय बढ़ेगी, आयात कम होगा और दाम संतुलित होने से उपभोक्ताओं को फायदा होगा।
इस साल 20 फरवरी को हुई नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद खाद्य तेलों (Edible oil) के कम उत्पादन पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भारत को सालाना करीब 65,000 से 70,000 करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है। इसलिए तिलहन उत्पादन बढ़ाना चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय तिलहन मिशन (National Oil Seed Mission) शुरू किया गया है। जिस पर पांच साल में करीब 19,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।