लखनऊ। यूपी की अपर मुख्य सचिव गृह आराधना शुक्ला ने शनिवार को इस संबंध में शासनादेश जारी किया। इसमें शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए शुल्क वृद्धि न किए जाने के संबंध में सात जनवरी 2022 को जारी शासनादेश को निरस्त कर दिया गया है। यह शासनादेश प्रदेश में संचालित सभी शिक्षा बोर्डों के वित्त विहीन विद्यालयों पर लागू होगा। कोविड-19 की वजह से पहली बार शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए शुल्क वृद्धि न किए जाने का निर्णय लिया गया था और शासनादेश 27 अप्रैल 2020 को जारी किया गया था।
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ताजा शासनादेश में कहा गया है कि वर्ष 2019-20 की शुल्क संरचना को आधार वर्ष मानते हुए उत्तर प्रदेश (यूपी) स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम 2018 के तहत शुल्क वृद्धि की जा सकती है। इसके अनुसार सत्र 2022-23 में वार्षिक वृद्धि की गणना के लिए नवीनतम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार माना जाएगा तथा वर्ष 2019-20 की शुल्क संरचना को आधार मानते हुए वर्ष 2019-20 में छात्रों से वसूल किए गए शुल्क के पांच प्रतिशत से अधिक की शुल्क वृद्धि नहीं की जाएगी।
सत्र 2022-23 के लिए शुल्क वृद्धि की गणना किए जाते समय वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 में शुल्क की काल्पनिक गणना नहीं की जाएगी। सभी जिला विद्यालय निरीक्षकों व मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों को इसकी निगरानी करने को कहा गया है कि कोई विद्यालय शासनादेश में दी गई व्यवस्था से अधिक फीस न बढ़ा पाए।
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शैक्षणिक सत्र 2019-20 में ‘एक्स’ वार्षिक शुल्क होने की दशा में सत्र 2022-23 में शुल्क वृद्धि नवीनतम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर वार्षिक वृद्धि की गणना की जाए + छात्रों से सत्र 2019-20 में लिए गए वार्षिक शुल्क ‘एक्स’ से पांच प्रतिशत से अधिक की वृद्धि नहीं की जाए।
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शिकायत कर सकेंगे अभिभावक
विद्यालयों द्वारा सत्र 2022-23 के लिए वसूल की जाने वाली फीस से यदि कोई छात्र, अभिभावक या अभिभावक अध्यापक एसोसिएशन क्षुब्ध है तो उनके द्वारा अधिनियम की धारा आठ के तहत जिला शुल्क नियामक समिति के समक्ष शिकायत की जा सकती है।
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