लखनऊ, ( एस.वी.सिंह उजागर )। किसान आंदोलन एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है। उनकी मांगे भी पिछली मांगों से मिलती जुलती हैं और आंदोलन का तरीका भी पहले जैसा। सरकार भी उन्हे रोकने के लिए बिल्कुल वही तरीका अपना रही है जो उसने पहले अपनाया था। यानि सड़कों पर वैरीकेटिंग और कीले लगाने वाला। किसान हरियाणा और पंजाब को मिलाने वाले शंभू बार्डर पर आ डटा है, वहीं दूसरे प्रदेशों से किसान संगठनों के आंदोलन में भाग लेने के लेकर अलग-अलग बयान आने लगे हैं। इस बार किसानों ने इस आंदोलन का नाम दिया है चलो दिल्ली मार्च।
Watch This Video :
शंभू बार्डर पर पानी की बौछारे, आंसू गैस के गोले और प्लास्टिक की गोलिया बरसाकर किसानों को खदेड़ने के सभी सरकारी प्रयास अभी तक के विफल हो चुके हैं। किसान दिल्ली में घुसने पर अड़ा है और सरकार उन्हे रोकने पर आमादा।
क्यों हो रहा आंदोलन?
एक सवाल – आखिर किसान अब आंदोलन क्यों कर रहे हैं? दूसरा सवाल- पिछला आंदोलन खत्म क्यों हुआ था? तीसरा सवाल- जो आंदोलन कर रहे हैं क्या वह किसान नहीं है? जैसा की ट्रोलर और गोदी चैनलों ने बोलना शुरू कर दिया है। चौथा सवाल- कि आखिर किसानों की मांगे क्या हैं। पांचवा सवाल- आखिर सरकार किसानों की मांगों पर चुप्पी क्यों साध जाती है। छठा सवाल-क्या किसानों का यह आंदोलन वास्तव में मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए है। तो आइए इसे समझते हैं।
Read This : यूपी की राजनीति में किस तरह हासिये पर आते गये ये राजनीतिक दल
किसानों की क्या है मांग?
किसान संगठनों की 10 मांगो में जो सबसे पहली और प्रमुख मांग है वह है न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर गारंटी कानून बनाने की। यह बात किसान क्यों कह रहे है? क्यों किसान एमएसपी पर गारंटी मांग रहा है?
इसे भी समझने की जरूरत है। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तो बढ़ा दिया लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीददारी होती कितनी हैं? शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश का महज 6 फीसदी किसान ही अपनी फसल एमएसपी दरों पर बेच पा रहा हैं। यह एक दम सच है, जो भी श्रोता इस वीडियो को देख और सुन रहे हैं वह खुद विचार कर लें कि उनके आस-पास के कितने किसान हैं जो अपनी फसल एमएसपी केंद्रों पर बेच पाते हैं। मैं खुद भी एक किसान हूं और हमारा यह चैनल भी किसानों के लिए कार्य कर रहा है। हम रोजाना किसानों से मिलते हैं और यह बात जानने की कोशिश करते हैं कि सरकार सदन के अंदर जो किसानों की फसलों को खरीदने का आंकड़ा प्रस्तुत करती है वह कितना सही है। सरकार बेसक आंकड़ो में दिखाया गया अनाज खरीदती होगी लेकिन किसानों का 95 फीसदी से ज्यादा अनाज लोकल व्यापारियों के पास या मंडियों में ही बिकता है वह भी आढतियों के खोले गये रेटों पर। यह भी एक सच है।
Also Read this : नेपाल से रामलला की मूर्ति बनने अयोध्या आयीं पत्थर की शिलाओं का क्या हुआ?
किसान यही तो मांग रहे है कि एमएसपी पर गारंटी कानून बना दो। यानी व्यापारी किसान का माल एमएसपी प्राइज से नीचे नहीं खरीद पायेगा। जब प्रधानमंत्री मंच पर छाती ठोककर यह बात बोलते हैं कि यह मोदी की गारंटी है तो फिर वह इसे कानूनी जामा क्यों नहीं पहनाते आखिर सरकार को इसमें दिक्कत क्या? उद्योगपतियों के लिए सरकार विधेयक पास करके कानून बना सकती है तो अर्थव्यवस्था में 70 फीसदी योगदान देने वाले किसान और मजदूर हित वाले कानून बनाने में आपत्ति क्या है?
स्वामीनाथन आयोग को लागू करे सरकार
आंदोलनरत किसानों की दूसरी प्रमुख मांग है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाये।
प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन को केंद्र सरकार ने भारत रत्न देने का ऐलान किया है। 20 साल पहले 2004 में प्रोफेसर स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक नेशनल कमीशन ऑन फारमर्स का गठन हुआ था। इस कमीशन ने 2 सालों के अंदर छह रिपोर्ट तैयार की। जिन्हे आज तक लागू नहीं किया जा सका। विशेषज्ञों का मानना है यदि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू कर दी जाये ंतो 70 फीसदी से ज्यादा किसानों की समस्याएं हल हो जायेंगी। सरकार इस पर भी खामोश है। जब कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की नियति ही नहीं है तो आखिर सरकार इनका गठन करती ही क्यों है। मोदी सरकार ने प्रोफेसर स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की है। भारत रत्न के साथ यदि 20 साल बाद उनकी रिपोर्ट को सरकार मंजूरी दे देती तो क्या स्वामीनाथन के लिए यह भारत रत्न से बड़ी श्रद्धांजलि नहीं हो जाती। लेकिन सरकार इस पर भी खामोश है।
लखीमपुर खीरी के किसानों को दिया जाये न्याय
आंदोलन कारियों की एक मांग लखीमपुर के किसानों को लेकर है। सभी को मालूम है कि लखीमपुर खीरी में केंद्र सरकार में एक मंत्री के बेटे ने अपनी गाड़ी से कुचलकर किसानों को मार डाला था। उन किसानों को अभी तक न्याय नहीं मिला। क्या न्याय देना सरकार का फर्ज नहीं है।
भूमि अधिग्रहण कानून की हो समीक्षा
Watch This Video :
किसानों की एक मांग भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर भी है। आये रोज सरकार किसानों की जमीन अधिग्रहण कर रही है लेकिन उन्हे उसका उचित मुआवजा नहीं मिल रहा है। उदाहरण के तौर पर अभी औरैया जनपद की ही बात लेलें यहां के जमौली, करौंधा, कंचौसी समेत 7 गांवों की जमीन एक थर्मल पॉवर प्लांट की बात कहकर अधिग्रहण कर ली गयी। किसानों को मात्र 5 लाख रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया गया। जमीन का रेट 1 करोड़ रूपये बीघा तक पहुंच गया है ऐसे में किसानों की जमीन मात्र 5 लाख रूपये एकड़ में हथिया लेना किसानों के साथ नाइंसाफी नही ंतो और क्या है? यहां किसानों से जबरन जमीन छीन लीं गयीं।
किसान चाहता है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को स्पष्ट किया जाए ताकि उसकी जमीन उसकी बिना इच्छा न ली जा सके और यदि सरकार को जमीन लेनी ही है तो उसका उचित मुआवजा किसान को मिले ताकि वह अपने परिवार का पेट पाल सके। किसानों का श्र्ृण माफ, बीमा योजना में सुधार, 58 साल से ऊपर के किसानों को पेंशन आदि समेत तकरीबन 10 मांगों को लेकर किसान और सरकार आमने सामने हैं।
ट्रोलर कर रहे आंदोलन का बदनाम
हमने पिछले आंदोलन के समय भी देखा था कि उन्हे खालिस्तानी, आतंकवादी पाकिस्तानी और चाइना समर्थित बताया गया लेकिन किसानों ने इसकी परवाह नहीं कि और बाद में सरकार को झुकना पड़ा। इस बार भी वही नजारा है। भाजपा का आईटी सेल आंदोलन को बदनाम करने में लग गया है और गोदी चैनलों का रवैया भी पहले सरीखा ही है।
सरकार सही या किसान !
हमें किसान अथवा सरकार किसी के भी पक्ष में बोलने से पहले मुद्दे को समझ लेना बहुत जरूरी है। हमने बहुत संक्षिप्त में किसानों की बात और उनके आंदोलन की बुनियाद को समझाने का प्रयास किया है। 2024 का आम चुनाव नजदीक है किसानों को लगता है कि ऐसे में सरकार उनके दबाव में आकर उनकी मांगों को मान सकती है जैसा पिछली बार हुआ। एपिसोड रिकार्ड किये जाने तक शंभू बॉर्डर पर किसान और सरकार के बीच संघर्ष जारी है। किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के नेता सुखविंदर सिंह साभरा ने दावा किया है कि पश्चिमी और पूर्वी भारत से तकरीबन 200 से ज्यादा किसान संगठनों ने दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है।