रिपोर्ट- विकास अवस्थी
औरैया। गाय को हिन्दू धर्म में माता का दर्जा हासिल है। गाय के नाम पर सरकारें सालाना अरबों रूपये का बजट जारी करती हैं। उनके संरक्षण और खान-पान की व्यवस्था दुरूस्त करने के लिए सरकार जनता से कई तरह के सेस भी वसूल रही है। टोल टैक्स, मण्डी शुल्क और शराब पर सेस गायों के संरक्षण और उनकी भोजन व्यवस्था के लिए ही लगाया गया है। लेकिन योगी राज में गो आश्रय केन्द्रों पर पलने वाली या कहें कि आश्रय पाने वाली गायें सूखा भूसा खाने पर मजबूर है।
औरैया जनपद के जनपद केे ब्लॉक भाग्यनगर की ग्राम पंचायत नियामतपुर बैहारी में राज्य सरकार द्वारा संचालित गौशाला में गोवंशियों को केवल सूखा भूसा दिया जा रहा है। गायों की देख रेख में लापरवाही का आलम यह है कि गायों की देख रेख करने वाले सेवादार ऑफिस समय यानि 10 बजे गोशाला पहुंचते हैें। सूखे भूसे को खाकर बीमार और कमजोर पड़चुकी गायें कितने दिनों तक जिंदा रहेंगी इस बात की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नही है।
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सेवादार ने बताई मजबूरी
गायों चारे के तौर पर दिये गये सूखे भूसे के सम्बन्ध में सेवादार ने बताया किए ’इस सम्बन्ध में मैं कुछ नहीं कर सकता। यहां के प्रधान सिर्फ सूख भूसा भिजवाते हैं इस लिए गायों को यही देना हमारी मजबूरी है। जनपद के ज्यादातर गो आश्रण केन्द्रों यही हाल है। पौष्टिक चारे के अभाव में वहां के जानवर कुपोषण का शिकार होकर अपनी जान गंवा रहे हैं।
सरकार प्रति गाय 900 रूपये प्रति माह का करती है भुगतान
छुट्टा गोवंशियों के रख रखाव के अलावा उनके दाना चारा आदि के लिए सरकार प्रति गोवंश 30 रूपये प्रतिदिन यानि 900 रूपये प्रति जानवर प्रतिमाह देती है। इसके अलावा गांव के प्रधान, ग्राव सचिव, वीडियो, जिलाधिकारी तथा मुख्य पशुचिकित्साधिकारी की जिम्मेदारी उन गायों के संरक्षण और स्वास्थ्य की देख रेख के लिए शासन से तय है। शासन द्वारा जारी शसनादेशों में अक्सर निराश्रित गोवंशियों को हरा चारा, दाना, भूसा आदि देने की अधिसूचना जारी की जाती है लेकिन उनके आदेश गांव स्तर की गोशालाओं में धूल फांकते है।
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गायों की व्यवहारिक समस्या आखिर वे कहां जायें ?
- गाय भी एक पशु ही है जिसे अपनी सीमाओं का ज्ञान नही होता। चरते-चरते यदि किसी के खेत में चला गया तो किसान उसे लठ मारता है।
- यदि किसी तरह गोआश्रय स्थल पहुंच गया तो उसे सूख भूसा वह भी आधा पेट ही नसीब होता है।
- यह धरती जितनी इंसान की है उतनी ही अन्य प्राणियों की। लेकिन अन्य सभी प्राणी इंसान के बंधक हैं।
- जिन गोशालाओं के बाहर हरी भरी घास उगी है उन्ही के अन्दर बंद गायें सूखा भूसा खाने पर मजबूर हैं।
- गोवंशीय जानवरों के लिए बड़ी समस्या है कि आखिर उनका धनी -ढोरी अब कौन है।
- यह भारत देश के विडम्बना है कि गाय को माता तो कहते हैं लेकिन जब उसके परिवरिश की बात आती है तो जिम्मेदारी सरकार पर डाल देते हैं।