लखनऊ, ( नेहा बाजपेयी )। क्रॉप वेदर वॉच गु्रप की सत्रहवीं बैठक में किसानों को बदलते मौसम से सावधान रहने की सलाह दी गयी है। उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद महानिदेशक डॉ संजय सिंह की अध्यक्षता में कृषि और मौसम वैज्ञानिकों की संयुक्त बैठक में गेंहू की पछेती बुआई के लिए उन्नत किस्मों के अलावा खड़ी फसलों की देखभाल के संदर्भ में विशेष दिशा निर्देश जारी किये गये।
बदली के आसार, बूंदा-बांदी का अंदेशा
क्रॉप वेदर वॉच गु्रप की सत्रहवीं बैठक में मौसम वैज्ञानिकों ने आगामी सप्ताह (21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर, 2023) के अनुमानित मौसम के विषय में जानकारी शेयर की। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदेश में आंशिक रूप से बादल छाये रहने तथा यूपी के पश्चिमी मैदानी क्षेत्र एवं भावर तराई क्षेत्र के पश्चिमी भाग में 23 दिसम्बर, को कहीं-कहीं बूंदी-बांदी के साथ बहुत हल्की वर्षा होने की संभावना है।
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बुंदेलखण्ड में तापमान गिरा रहेगा
प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के दक्षिणी भाग में औसत साप्ताहिक अधिकतम तापमान सामान्य से आंशिक रूप से कम रहने जबकि प्रदेश के अन्य कृषि जलवायु अंचलों में यह सामान्य से आंशिक रूप से अधिक रहने की संभावना है।
प्रदेश के भावर तराई को पश्चिमी एवं पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के उत्तरी भाग में औसत न्यूनतम तापमान 06 से 08 डिग्री सेल्सियस तथा उत्तरी पूर्वी मैदानी क्षेत्र के अधिकांश भाग एवं पूर्वी मैदानी क्षेत्र के उत्तरी भाग में औसत न्यूनतम तापमान 10 से 12 डिग्री सेल्सियस जबकि प्रदेश के अन्य कृषि जलवायु अंचलों में 08 से 10 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना हैैै।
तापमान में गिरावट लेकिन वर्षा के आसार नहीं
द्वितीय सप्ताह (28 दिसम्बर से 03 जनवरी, 2023) के दौरान प्रदेश में कोई प्रभावी वर्षा होने की संभावना नहीं है। इस सप्ताह के दौरान प्रदेश के पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के दक्षिणी भाग एवं दक्षिणी पश्चिमी अर्धशुष्क मैदानी क्षेत्र के पश्चिमी भाग में अधिकतम तापमान सामान्य से 04-06 डिग्री सेल्सियस अधिक जबकि प्रदेश के अन्य कृषि जलवायु अंचलों में यह सामान्य से 02-04 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की संभावना है।
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प्रदेश के बुंदेलखण्ड एवं विघ्य क्षेत्र के अधिकांश भाग में औसत साप्ताहिक न्यूनतम तापमान सामान्य से आंशिक रूप से अधिक जबकि प्रदेश के अन्य कृषि जलवायु अंचलों में सामान्य से 02 से 04 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की संभावना है। प्रदेश के भांवर तराई, पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में बुंदेलखण्ड एवं विघ्य क्षेत्र के अधिकांश भाग में तथा मध्य पश्चिमी मैदानी एवं दक्षिणी पश्चिमी अर्धशुष्क मैदानी क्षेत्र के पश्चिमी भाग में औसत न्यूनतम तापमान 08 से 10 डिग्री सेल्सियस जबकि प्रदेश के अन्य कृषि जलवायु अंचलों में न्यूनतम तापमान 10 से 12 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है।
क्या करें गेंहू किसान
- जिन किसानों ने अभी तक गेहूॅं की बुआई नहीं की है वह गेहूँ की विलम्ब से बुवाई हेतु क्षेत्रीय संस्तुत प्रजातियों यथा डी.वी.डब्लू.-316, डी.वी.डब्लू.-107, पी.वी.डब्लू.-833, एच.डी.-3118, के.-7903 (हलना) एवं के.-9423 (उन्नत हलना) आदि की बुवाई 25 दिसम्बर तक करें।
- गेहूँ की अति विलम्ब से बुवाई हेतु क्षेत्रीय संस्तुत प्रजातियों यथा एच.डी.-3271, एच.आई.1621, डब्लू.आर.-544, के.-7903 (हलना) एवं के.-9423 (उन्नत हलना) आदि की बुवाई 15 जनवरी तक करें।
- गेहूॅं मंे बुवाई के 20-25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था में) हल्की सिंचाई अवश्य करें। विशेष रूप से ऊसर भूमि में पहली सिंचाई 25-30 दिन बाद हल्की ही करें। सिंचाई शाम को ही करें।
- गेहूँ में सॅंकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण हेतु पैंडीमेथेलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर बुवाई के 03 दिन के अंदर संस्तुत मात्रा को लगभग 300 ली. पानी में घोलकर प्रति हे. फ्लैटफैननाजिल से छिड़काव करें अथवा मैट्रब्यूजिन 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 250 ग्रा. बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. फ्लैटफैननाजिल से छिड़काव करें।
- गेहूँ की खड़ी फसल में यदि जिंक के कमी के लक्षण दिखाई दे तो 5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट तथा 16 कि.ग्रा. यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर से छिड़काव करें। यदि यूरिया की टापड्रेसिंग की जा चुकी है तो यूरिया के स्थान पर 2.5 कि.ग्रा. बुझे हुये चूने के पानी में जिंक सल्फेट घोलकर छिड़काव करें (2.5 कि.ग्रा. बुझे हुये चूने को 10 ली. पानी में सायंकाल डाल दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल इस पानी को निथारकर प्रयोग करें)।
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तिलहनी फसलों की ऐसे करें देखभाल
- तिलहनी फसलोें में आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई 60 से 65 दिन बाद कलियां बनने की अवस्था पर करें।
- तिलहनी फसलोें में माहू चित्रित बग, एवं पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. अथवा आक्सीडेमेटॉन-मिथाइल 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा क्लोरीपारीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 1.0 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एस.एल. की 500 मि.ली. प्रति हे. की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में छिड़काव करें।
- तिलहनी फसलोें में किसान भाई अपने खेत की निरंतर निगरानी करते रहे, सफेद रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देने पर 600 से 800 ग्रा. मैकोजेब (डाईथेन एम-45) का छिड़काव 250 से 300 लीटर पानी में डालकर 15 दिन अंतराल पर 2 से 3 बार करें।
चना और मटर में कब करें सिचाई
- चना में प्रथम सिंचाई आवश्यकतानुसार बुवाई के 45 से 60 दिन बाद (फूल आने के पहले) तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय करें फूल आने के समय सिंचाई कदापि न करें।
- दलहनी फसलों में खेत में जगह जगह सूखी घास के छोटे छोटे ढ़ेर को रख देने से दिन में कटुआ कीट की सूड़िया छिप जाती है, जिसे प्रातः काल एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिये।
- मटर में फूल आने के समय एक सिंचाई तथा दाना भरते समय दूसरी सिंचाई अवश्य करें।
मटर की फसल में बुकनी रोग का लक्षण दिखाई देने पर नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत 2 कि.ग्रा. अथवा ट्राईडेमेफॉन 25 प्रतिशत डब्लू.पी. 250 ग्राम प्रति हे. लगभग 500 से 600 पानी में घोलकर छिड़काव करें।
गन्ना किसान दें ध्यान
- गन्ने की कटाई जमीन के बराबर से करें। जाड़े में काटे गन्ने की पेड़ी में अपेक्षाकृत कम फुटाव होता है।
- अच्छा फुटाव प्राप्त करने के लिये सिंचाई के उपरान्त ओट आने पर 10 टन/हे. ताजा प्रेसमड डालकर गुड़ाई करें। इनसे फुटाव अच्छा होगा।
- अगेती गन्ने में तनाबेधक के नियंत्रण हेतु क्लोरपाईरीफॉस एक लीटर सक्रिय तत्व 600 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
आलू और टमाटर में पछेती झुलसा ऐसे रोकें
- आलू में पछेती झुलसा तापमान 10 20 सेन्टीग्रेट के मध्य तथा अपेक्षित आर्द्रता 80 प्रतिशत के लगभग एवं मौसम बदलीयुक्त होने पर इस रोग का प्रसार अधिक होता है।
- रोग की रोकथाम के लिये लक्षण दिखाई देने से पूर्व ही जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू. पी. 1.5 – 2.00 कि.ग्रा प्रति हे के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर अवश्य करें।
- टमाटर तथा मिर्च में झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत की 2 ग्रा. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
आम बागवानों के लिए यह है सलाह
आम में मैगो मिलीबग की रोकथाम के लिये दिसम्बर के अंतिम सप्ताह तक वृक्ष के मुख्य तने पर लगभग 1/2 मीटर की ऊँचाई पर 25 से 30 से.मी. चौड़ी 400 गेज की पॉलीथीन शीट पर पतली सुतली से बांधकर दोनों सिरों को चिकनी मिट्टी तथा ग्रीस का लेप करें।
पशुपालकों के लिए विशेष सूचना
पशुओं में खुरपका एवं मुंहपका बीमारी (एफ.एम.डी.) का टीकाकरण कराया जा रहा है, यह सुविधा पशुचिकित्सालयों पर निःशुल्क उपलब्ध है।
वर्तमान मौसम को देखते हुए पशुओं को ठंड से बचाने के लिए सुबह-शाम पशुओं पर झूल डालें तथा रात में पशुओं को अन्दर पशुघर में बांॅंधें।
दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिये पूरा दूध निकालें और दूध दोहन के बाद थनों को कीटाणुनाशक घोल में डुबायें।
कृषकों/पशुपालकों के द्वारा पर पशु चिकित्सा उपलब्ध कराने हेतु विभाग के द्वारा मोबाइल वेटनरी यूनिट योजना का संचालन किया जा रहा है। इस योजना का लाभ लेने हेतु पशुपालक टोल फ्री हैल्पलाइन नं. 1962 पर सम्पर्क करें।
तलाबों में डालें बुझा चूना
वर्तमान समय शीत ऋतु का है ऐसे समय में तालाबों में अल्सरेटिव डिजीज सिड्रोम की बीमारी परिलक्षित होती है अतः कृषकों को सलाह दी जाती है कि अपने-अपने तालाबों में 2.00 से 2.5 कु. प्रति हे. की दर से बुझे हुये चूने का प्रयोग करें।
वर्तमान में मछलियों में वृद्धि दर कम होती है अतः पूरक आहार का प्रयोग मछलियों के वजन के 1 प्रतिशत तक ही किया जाय।
रेशम पालकों के लिए एडवाइजरी
रेशम पालन हेतु शहतूत वृक्षों/झाड़ियों की प्रूनिंग ट्रिमिंग 31 दिसम्बर तक पूर्ण कर लें।
पॉपुलर की कटिंग का समय
पॉपलर की कटिंग क्यारियों में लगा दें। बकैन जैसे पतझड़ी पौधों का रोपण कर दें। बाँस अधिक से अधिक लगायें जाये। खेत के किनारों पर इसकी बाड़ भी लगाई जाय।
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