लखनऊ, ( एस.वी.सिंह उजागर )। सारी जवानी जेल में खप गई। 23 साल बाद बाइज्ज बरी हो गये। कोर्ट ने कहा ये लोग तो आरोपी ही नही है। सोचो बिना आरोप के जो लोग 23 सालों तक जेल में सड़े हों ऐसे सिस्टम और ऐसे कानून के प्रति भला किसकी आस्था पनपेगी। मंगलवार को जयपुर जेल से रिहा हुए पांचो आरोपी जब खुले आसमान में आये तो उनके मन में क्या भाव रहे होंगे।
घटना 1996 की है। एक ब्लास्ट होता है और उसमें 14 लोगों की जान चली जाती है। कई घायल भी होते हैं। पुलिस जांच करती है और पांच लोगों को गिरफ्तार कर जयपुर जेल में डाल देती है। फिर उन्हे न पेरोल मिलती है और न जमानत।
23 साल बाद सीधे फैसला आता है जिसमें कहा जाता है कि ये लोग तो आरोपी ही नही हैं, अतः अब इन्हे बाइज्जत बरी किया जाता है।
यह भी पढ़ें-टिकैत बोले: सरकार ने लगा रखा ‘सेल फॉर इण्डिया’ का बोर्ड, शुरू हुई महापंचायत
ये कोई फिल्मी कहानी का सीन नही बल्कि ये दिल को झकझोर देने वाली दास्तां है, लतीफ अहमद बाजा (42), अली भट्ट (48), मिर्जा निसार (39), अब्दुल गनी (57), और रइस बेग (56) की। जिन्हे पुलिस ने उक्त ब्लॉस्ट का आरोपी बनाकर जेल में ठूंस दिया था। खैर अब वह आजाद हैं और अपने घर जा चुके हैं। लेकिन अब उनके घर परिवार की दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी है। इनमें से कइयों के माँ, बाप, चाचा, दादा वगेरह गुजर गए । मिर्जा निसार तो गिरफ्तारी के समय 9वीं क्लास में ही था । आतंक के आरोप में पूरी जिंदगी तबाह हो जाने के बाद मंगलवार को ये लोग जेल से बाहर आएं।
यह भी पढ़ें- गिद्धों की विलुप्ति का मूल कारण पशुओं को इलाज में प्रयोग होने वाली दवाएं
कौन मानेगा कानून सबके लिए बराबर है ?
ये घटना हमें क्या हमारी सड़ी गली व्यवस्था के प्रति कुछ भी सोचने को मजबूर नही करती ? ऐसे कितने ही लोग हैं जो बिना अपराध के ही जेलों में सड़ रहे हैं। अमित चौधरी की फेसबुक वॉल की पोस्ट से इनपुट लेकर यह समाचार लिखा गया है जिसमें पोस्टकर्ता ने कहा है कि- कानून सबके लिए बराबर है ये दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। लतीफ, अली, मिर्जा, अब्दुल और रईस को कौन विश्वास दिला पायेगा कि कानून सबके लिए बराबर है।