Published by Neha Bajpai
नयी दिल्ली, (एजेंसी)। उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों से सामाजिक भेदभाव और उनसे जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए कल्याण बोर्ड गठित करने संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों से सोमवार को जवाब तलब किया।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सामाजिक संस्था ‘किन्नर मां’ की ओर से पेश वकील की दलीलें सुनने के बाद केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये।
न्यायमूर्ति बोबडे ने माना कि यह विषय संवेदनशील है। उन्होंने कहा, “मामला निश्चित रूप से संवेदनशील है, लेकिन क्या संसद ने किन्नर वर्ग की समस्याओं के समाधान के लिए एक कानून नहीं बना दिया है?” इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संसद ने 2019 में ‘द ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट बनाया है, लेकिन इसमें किन्नरों के संरक्षण के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किए गए हैं।
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उन्होंने यह भी दलील दी कि किन्नरों से जुड़े मसलों को देखने के लिए हर राज्य में किन्नर कल्याण बोर्ड के गठन से बड़ी मदद मिल सकती है। उन्होंने बताया कि विधानसभा को इस तरह के बोर्ड के गठन का कानून बनाने की शक्ति हासिल है। तमिलनाडु, असम और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने इस तरह के बोर्ड का गठन किया है।
इसके बाद न्यायालय ने केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये। याचिकाकर्ता ने कहा है कि स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी तमाम सुविधाएं किन्नरों को आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं। उनके शोषण और यौन उत्पीड़न की घटनाओं को पुलिस गंभीरता से नहीं लेती। सरकार ने शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद किन्नरों को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण नहीं दिया।
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