औरैया, (विकास अवस्थी)। इमली के तीरे-तीरे निकली पतंग, नौ से बच्चे नौ सो रंग। आंगन में गजबेल सुगना। बुंदेल खण्ड का पूरा इलाका और मध्य यूपी के कुछ जनपद इन दिनों झेंझी और टेसू उत्सव की तैयारी में लग गये हैं। गांव और गलियों के बच्चे खासे उत्साहित हैं। लड़के टेसू बना रहे हैं तो लड़कियां झेंझी रख रहीं हैं।
शाम होते ही बुंदेल खण्ड समेत औरैया, इटावा, मैनपुरी, ऐटा, कानपुर देहात, कन्नौज अदि जिलों में इन दिनों हर चौपाल में टेसू और झेंझी के खेल की चर्चा है। लड़कों की टोलियां टेसू को लेकर शाम होते ही दरबाजे-दरबाजे पर मांगने निकल पड़ती हैं। वहीं लड़कियों की मण्डली झेंझी लेकर निकलती हैं। ये लोग जिस दरबाजे पर जाते हैं, इन्हे लोग पैसा, अनाज आदि देते हैं। यह एक प्रकार से झेंझी और टेसू के व्याह को लेकर किया जाने वाला चंदा होता है। लगातार सात दिन तक मांगने और गाने का क्रम चलता है।
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पूर्णिमा को होती है दोनों की शादी
लोक परंपरा के अनुसार नवमी को जहां इस उत्सव की तैयारी शुरू हो जाती है वहीं पूर्णिर्मा पर इनके व्याय के बाद समाप्त होती है। बुंदेलखण्ड को इस पूनम की तिथि को टिसवाई पूनौं कहा जाता है। गांव में जितनी भी चौपालें झेंझी और टेसू को रखती हैं सभी पूर्णिमा के दिन अपनी-अपनी चौपालों में धूम-धाम से उनका व्याह रचाते हैं। औरैया जमौली गांव में वर्षों से यह त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता रहा है। यहां के लोग उस दिन बाकायदा रसोइया करते हैं और गांव वालों को न्योतिते हैं।
विवाह के बाद होता है विसर्जन
लोक परंपरा के अनुसार झेंझी और टेसू के व्याह के बाद किसी तालाब या पोखरे में उनका विसर्जन कर दिया जाता है। और अगले दिन लड़कियों की टोली अपनी सखी झेंझी के याद में सुबह से दरबाजे-दरबाजे फिर गीत गाकर मांगने निकलतीं हैं। उस दिन इन्हे लोग भिच्छा में टाटा, चावल, तेल और दालें इत्यादि देते हैं। इसके बाद यह झेंझी की सखियां उसी समान से गांव के बाहर जाकर खाना पकातीं है और सबमें बांटती हैं।
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इसके बाद से सुरू हो जाता है लगन का सीजन
क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि इसके बाद सहालग का मौसम शुरू हो जाता है। झेंझी और टेसू का विवाह शुभ लगन प्रारंभ होने का सूचक माना जाता है। इसके बाद लोग अपने-अपने लड़कों और लड़िकयों की लगन करना शुरू कर देत हैं। यह प्रथा काफी प्राचीन समय से चली आ रही है। लोग इसे महाभारत काल के बरबरीक से जोड़कर देखते हैं।
मांगने के दौरान गाये जाने वाले कुछ प्रचलित गीत
सात दिन जब सखी और सखाओं की टोली मांगने के लिए निकलती है तो लड़कियों के कुछ प्रचलित गीतों के मुखड़े इस तरह से हैं-
1-च्ंदा रपट मेरी जेबर टूटी सुंगना अब घर कैसेेेे जायें, घरे जो जैहें सास रिसैहें मोसे बन में रहो न जायें।।
2- मेरे आंगन में गजबेल सुंगना, पहलो फूल जब तोड़ों रे सुंगना।
जहां लड़कियां उक्त गीत गाती हैं वहीं लड़के अपनी तरह के तराने गाकर सबका मनोरंजन करते हैं। तुकबंदी भरे ये गीत लोगों का खूब मनोरंजन करते हैं। नीचे उनमें से कुछ के मुखड़े दिए जा रहें हैं-
1- इमली के तीरे तीरे निकली पंतग, नौ सौ बच्चे नौ सौ रंग।
2- टेसू अटर करें टेसू मटर करें टेसू लयी के टरें।
3- एक डिब्बा आर पार, उसमे बैठे लाड़ साहब।
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देर रत्रि तक महिलाएं चौपाल में करती हैं तफरीह
इन दिनों महिलाओं को पूरी छूट रहती है। वह अपने-अपने घरों की चौपालों में इकट्ठा होकर अलग-अलग तरह के नाटक नकटौरे करती हैं। घर का काम खत्म करके मुहल्ले की सारी महिलाएं पहले झेंझी नृत्य करती हैं फिर बाद में विभिन्न तरह की प्रतियोगिताएं जैसे -कबड्डी, खोंखो आदि खेल खेलतीं है। कई बार पुरूष वर्ग भी इनके खेल को छिप-छिप कर देखते हैं लेकिन सिर्फ देखने की इजाजत होती है। कोई उस दौरान वहां हस्तक्षेप नही कर सकता।
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