लखनऊ। क्रॉप वेदर वॉच गु्रप की आठवीं बैठक में मौसम के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसानों को अगले सप्ताह कृषि प्रबन्धन के लिए विभिन्न तरह के सुझाव दिए गये।
उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद सभागार में उपकार के महानिदेशक डॉ. संजय सिंह की अध्यक्षता में मौसम एवं कृषि वैज्ञानिकों की मौजूदा सत्र की आठवीं बैठक में किसनों को मौसम के हिसाब से कृषि प्रबंधन करने की सलाह दी गयी। उपकार के वैज्ञानिक अधिकारी एवं मीडया इंचार्ज विनोद कुमार तिवारी ने बताया कि शुक्रवार को आहूत बैठक में किसानों के लिए आगामी सप्ताह में फसल प्रबंधन के तरीकों पर विमर्श हुआ।
श्री तिवारी के अनुसार 27 जुलाई से 02 के आरंभिक चरण में पूर्वी उत्तर प्रदेश में वर्षा की मात्रा कुछ अंचलों तक सीमित रहने की संभावना है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में वर्षा के क्षेत्रीय वितरण एवं तीव्रता में वृद्धि होने से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग सभी अंचलों में हल्की से मध्यम वर्षा होने के साथ कहीं-कहीं भारी वर्षा होने की भी संभावना है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस सप्ताह के दौरान लगभग सभी अंचलों में हल्की से मध्यम वर्षा का दौर जारी रहने के साथ कहीं-कहीं भारी वर्षा होने की भी संभावना है।
मेघ गर्जन और वज्रपात की संभावना
इस माह के आखिर व अगस्त माह के प्रथम सप्ताह के दौरान राज्य में कुछ स्थानों पर मेघ गर्जन के साथ वज्रपात होने की भी संभावना है। द्वितीय सप्ताह 03 से 09 अगस्त, तक प्रदेश के अधिकांश अंचलों में गरज-चमक के साथ हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना है।
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इस दौरान किसान ऐसे करें कृषि प्रबंधन
प्रदेश में मौसम के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसानों को अगले सप्ताह कृषि प्रबन्धन के लिए विभिन्न तरह के सुझाव दिए गये। मानसून में वर्षा समय से प्रारंभ होने के उपरांत प्रदेश के अनेक जनपदों में वर्षा का लम्बा अन्तराल होने की दशा उत्पन्न हो गई है। किंतु अगले पखवाड़े 27 जुलाई से 09 अगस्त, तक में प्रदेश के अधिकांश अंचलों में हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना के दृष्टिगत कृषकों को निम्न सलाह दी जाती है-
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- खरीफ फसलों की बुवाई पर्याप्त नमी की दशा में ही करें।
- यदि बुआई में विलम्ब हो रहा हो तो दलहनी, तिलहनी व श्रीअन्न फसलों की कम अवधि की सूखा सहनशील किस्मों की बुआई की जाय।
- दलहनी व तिलहनी फसलों में घने पौधों का विरलीकरण (थिनिंग) कर पौध संख्या कम रखी जाय तथा मल्च के रूप में बायोमास (जैव उत्पाद) का प्रयोग किया जाय।
- सब्जियों तथा दलहनी व तिलहनी फसलों में जीवन रक्षक सिंचाई हेतु क्यारी तथा बरहा विधि अथवा एकान्तर पंक्ति विधि को अपनायें।
- खेतों मे मेड़बन्दी करके नमी को संरक्षित करें तथा तालाबों, पोखरों एवं झीलों में संरक्षित वर्षा जल को फसलों की क्रान्तिक वृद्धि की दशाओं में सिंचित करने के लिये उपयोग में लायें।
- संग्रहित/एकत्रित किये गये जल से सब्जियों तथा दलहनी व तिलहनी फसलों में दक्ष सिंचाई विधियॉ जैसे-स्प्रिंकलर एवं ड्रिप सिंचाई अपनाकर फसलों को बचाये।
- फसलों द्वारा जल हानि को कम करने के लिये ज्वार, मक्का तथा गन्ने की पुरानी पत्तियों को पौधों से अलग कर उन्हें पंक्तियों के बीच मल्च (पलवार) के रूप में प्रयोग करें।
- अल्प वर्षा वाले जनपदों में धान्य फसलों की सूखा के प्रति सहनशीलता बढ़ाने हेतु 2 प्रतिशत यूरिया एवं 2 प्रतिशत म्यूरेट ऑफ पोटाश के घोल का छिड़काव करें।
- संबंधित विभागों को निर्देशित किया जाय कि नहरों/नलकूपों की नालियों को ठीक दशा में रखे, जिससे आवश्यकतानुसार जीवन रक्षक सिंचाई उपलब्ध कराई जा सकें।
- बुन्देलखण्ड में संकेन (रेज्ड)-बेड विधि से दलहनी एवं तिलहनी की सह-फसली खेती को अपनाया जाय।
- धान की रोपाई का कार्य कृषक यथाशीघ्र पूर्ण करें।
- धान की ‘‘डबल रोपाई या सण्डा प्लाटिंग’’ हेतु दूसरी रोपाई पुनः पहले रोपे गये धान के 03 सप्ताह बाद 10 ग 10 से.मी. की दूरी पर करें।
- दलहनी एवं तिलहनी फसलों में जल भराव न होने दंे, जल निकास का उचित प्रबन्ध करें।
- विलम्ब से धान की रोपाई करने पर अधिक अवधि वाली पौध (30-35 दिन) की रोपाई 2-3 पौध प्रति पंुज के स्थान पर 3-4 पौध की रोपाई प्रति पुंज करें। विशेष रूप से ऊसर एवं क्षारीय भूमियों में 3-4 पौध की रोपाई प्रति पुंज करें। रोपाई से पहले पौधों की पत्तियों के शिरों को काट दें।
- रोपाई के बाद धान के जो पौधे नष्ट गए हों उनके स्थान पर दूसरे पौधों को तुरन्त लगा दें ताकि प्रति इकाई पौधों की संख्या कम न होने पाये।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बाजरा की संकुल किस्मों घनशक्ति, डब्लू.सी.सी.-75, आई.सी.एम.बी.-155, आई.सी.टी.पी.-8203, राज-171 तथा न.दे.पफ.बी.-3 तथा संकर किस्मों 86 एम 84, पूसा-322, आई.सी.एम.एच.-451 तथा पूसा-23 की बुवाई करें।
- कोदों की किस्मों यथा जी.पी.वी.के.-3, ए.पी.के.-1, जे.के.-2, जे.के.-62, वम्बन-1 व जे.के.-6 की बुवाई करें।
- मूंग की किस्मों यथा आजाद मूंग-1, पूसा-1431, मेहा 99-125, एम.एच.-2.15, टी.एम.-9937, मालवीय, जनकल्याणी, मालवीय, जनचेतना, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जागृति, मालवीय ज्योति, पंत मूंग 4, नरेन्द्र मूंग-1, पी.डी.एम.-11, आशा, विराट एवं शिखा की बुवाई करें। बीज का उपचार मूंग के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से अवश्य करें।
- उर्द की किस्मों यथा शेखर-1, शेखर-2, शेखर-3, आई.पी.यू.-94-1, नरेन्द्र उर्द-1, पंत उर्द-9, पंत उर्द-8, आजाद-3, डब्लू.बी.यू.-108, पंत उर्द-31, आई.पी.यू.-2-43, तथा आई.पी.यू.- 13-1 की बुवाई करें। बीज का उपचार उर्द के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से अवश्य करें।
- तिल की उन्नतशील किस्मों यथा गुजरात तिल-6, आर.टी.-346, आर.टी.-351, तरूण, प्रगति, शेखर टाइप-78, टाइप-13, टाइप-4, आर.टी.-372 व टाइप-12 की बुवाई करें। तिल में फाइलोडी रोग से बचाव हेतु आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 प्रतिशत ई.सी. 01 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
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