भारत के विभाजन की दास्तान एक ऐसी विभीषिका है, जो रह-रह कर मन में टीस पैदा करती है। देश की आजादी के अब तक 76 साल बीत गये हैं, किन्तु बीते 74 साल तक किसी ने भी इस भयानक विभीषिका की याद नहीं दिलाई। भला हो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का, जिन्होंने पहली बार 2021 में इस त्रासदी की पीड़ा को अहसास कर पाने की प्रेरणा दी।
हालांकि कांग्रेस पार्टी की ओर से बार-बार कहा जाता है कि देश को आजादी हमने दिलाई। जबकि आजादी के आंदोलन में देश की हर गली, हर मोहल्ले और हर घर का व्यक्ति शामिल था। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतिहासकारों ने स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को ऐसे लिखा कि सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के कुछ दिग्गज नेताओं के अलावा आजादी के आंदोलन में और किसी का नाम और योगदान नजर नहीं आता। सवाल उठता है कि आजादी के आंदोलन की सफलता का श्रेय सिर्फ खुद को देने वाली कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि देश के विभाजन का जिम्मेदार आखिर कौन था? विभाजन के समय जो कत्ले आम हुआ और मानवता को शर्मसार करने वाली जो घटनाएं हुईं उसका जिम्मेदार कौन था? यही नहीं, यह भी बताना चाहिए कि देश के विभाजन के चलते भारत के समक्ष जो समस्याएं खड़ी हुईं और जिनका खामियाजा आज भी देश भुगत रहा है उसका जिम्मेदार कौन है?
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आजादी के समय हुए नरसंहार के लिए तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व को ही जिम्मेदार कहा जा सकता है, क्योंकि उसकी अदूरदर्शिता की वजह से कई गलत निर्णय हुए थे। महात्मा गांधी धर्म के आधार पर देश के विभाजन के विरोधी थे, इसीलिए वह देश में पहली बार मनाये जा रहे आजादी के जश्न में भी शामिल नहीं हुए थे। क्योंकि यह वह आजादी नहीं थी जिसके लिए महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के बलबूते लड़ाई लड़ी थी। महात्मा गांधी ने शांति और अमन चैन वाली पूर्ण आजादी की मांग की थी लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं की वजह से उन्हें अपने उद्देश्य में आधी-अधूरी ही कामयाबी मिल सकी थी।
यदि हम आजादी के समय के घटनाक्रमों पर गौर करेंगे तो साफ प्रतीत होगा कि कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व की सत्ता लोलुपता ही भारत के विभाजन का असल कारण थी। कांग्रेस जानती थी कि अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति है। इस बात को समझते हुए भी भारत के विभाजन के लिए राजी हो जाना बहुत बड़ी गलती थी। ऐसा कहा जा सकता है कि विभाजन की प्रक्रिया को अंजाम देने के समय अंग्रेज सरकार का विरोध नहीं करके कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व ने बहुत बड़ा अपराध किया था। देखा जाये तो कांग्रेस का तत्कालीन नेतृत्व इस बात के लिए आतुर था कि कैसे जल्दी से जल्दी सत्ता पर कब्जा किया जाये। इसलिए भारत का विभाजन होते समय उन्हें कोई दर्द ही नहीं हुआ। दर्द तो उन लोगों ने सहा जिन्हें अपना घरबार छोड़ना पड़ा, परिजनों को खोना पड़ा और संपत्ति से हाथ धोना पड़ा। अंग्रेजों से आजादी मिलने से पहले जिन लोगों ने जन्म लिया था, उन्हें आज भी याद होगा कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब में किस तरह ज़हर घोला गया था जिसकी झलक आज भी जब-तब देखने को मिल जाती है।
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विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस भारत में 14 अगस्त को मनाया जाने वाला एक वार्षिक राष्ट्रीय स्मारक दिवस है, जो 1947 के भारत विभाजन के दौरान लोगों के पीड़ितों और पीड़ाओं की याद में मनाया जाता है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद इसे पहली बार सन 2021 में मनाया गया था।
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विभाजन की विभीषिका और स्मृति दिवस
भारत का विभाजन देश के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं था। इसका दर्द आज भी देश को झेलना पड़ रहा है. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने पाकिस्तान को 1947 में भारत के विभाजन के बाद एक मुस्लिम देश के रूप में मान्यता दी थी। लाखों लोग विस्थापित हुए थे और बड़े पैमाने पर दंगे भड़कने के चलते कई लाख लोगों की जान चली गई थी।
इससे पहले ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के लिए भी लाखों भारतीयों ने कुर्बानियां दी थीं। 14 अगस्त 1947 की आधी रात भारत की आजादी के साथ देश का भी विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया। विभाजन से पहले पाकिस्तान का कहीं नामो-निशान तक नहीं था। अंग्रेज भारत छोड़ कर जा तो रहे थे, लेकिन उनकी साजिश का नतीजा था कि भारत को बांटकर एक अन्य देश खड़ा किया गया।
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कभी नहीं भूली जा सकती वह रात
विभाजन की घटना को याद किया जाए तो 14 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए इतिहास का एक गहरा जख्म है। वह जख्म तो आज तक ताजा है और भरा नहीं है। यह वो तारीख है, जब देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान एक अलग देश बना। बंटवारे की शर्त पर ही भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली।
भारत-पाक विभाजन ने भारतीय उप महाद्वीप के दो टुकड़े कर दिए। दोनों तरफ पाकिस्तान (पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान) और बीच में भारत। इस बंटवारे से बंगाल भी प्रभावित हुआ। पश्चिम बंगाल वाला हिस्सा भारत का रह गया और बाकी पूर्वी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने 1971 में बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया।
दिलों और भावनाओं का भी बंटवारा
देश का बंटवारा हुआ लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से नहीं। इस ऐतिहासिक तारीख ने कई खूनी मंजर देखे। भारत का विभाजन खूनी घटनाक्रम का एक दस्तावेज बन गया जिसे हमेशा याद किया जाता रहेगा। दोनों देशों के बीच बंटवारे की लकीर खिंचते ही रातों-रात अपने ही देश में लाखों लोग बेगाने और बेघर हो गए थे। धर्म-मजहब के आधार पर न चाहते हुए भी लाखों लोग इस पार से उस पार जाने को मजबूर हुए।
इस अदला-बदली में दंगे भड़के, कत्लेआम हुए। जो लोग बच गए, उनमें लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई। भारत-पाक विभाजन की यह घटना सदी की सबसे बड़ी त्रासदी में बदल गई। यह केवल किसी देश की भौगोलिक सीमा का बंटवारा नहीं बल्कि लोगों के दिलों और भावनाओं का भी बंटवारा था। बंटवारे का यह दर्द गाहे-बगाहे हरा होता रहता है। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस इसी दर्द को याद करने का दिन है।
भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी की कविता…।
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता- आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है।
जिनकी लाशों पर पग धर कर आजादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई।
कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं।
हिन्दू के नाते उनका दुख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती।
इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है।
भूखों को गोली, नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कण्ठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं।
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख़्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन ग़ुलामी का साया।
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है।
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें।
*लेखक दैनिक जागरण और राष्ट्रीय सहारा जैसे संस्थानों में वरिष्ठ पत्रकार रह चुके हैं।
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