औरैया, (रिपोर्ट- अभय कुश)। चैत्र पूर्णिमा को लगने वाले बाबा ब्रह्मदेव के मेले में सैकड़ों मील से श्रद्धालु अपनी मन्नत (मनोकामना) लेकर यहां आते हैं। ढोल और नगाड़ों के बीच भक्त बाबा की पैक्रमा करते है। ज्वारे खेलते हैं। हजारों की तादात महिलाएं मंदिर प्रांगड़ व देव स्थानों पर बधाई नृत्य (भक्ति रस में डूबकर) करती हैं।
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पीढ़ियों से चली आ रही जवारे प्रथा
ब्रह्मदेव के मेले में आने के लिए भक्तजन हफ्तों और महीनों पहले से तैयारियां शुरू कर देते हैं। बाबा के दरबार ज्वारे (जवारे) चढ़ाने की प्रथा कई पीढ़ियों से चलती आ रही है। बताया जा रहा है कि यह मेला बहुत प्राचीन है, पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के शासन काल से सन्दर्भित कई प्रसंगो की चर्चा यहां देखने को मिलती है। बाबा के भक्त नवमीं तिथि को बाबा के नाम के जवारे बोते हैं और पूर्णिमा के उन्हें बाबा के दरबार में चढ़ाने आते हैं।
झण्डा और घण्टो का लग जाता है अंबार
चैत्र माह की नवरात्रि शुरू होते ही बाबा ब्रह्मदेव के मंदिर पर झंडा और घण्टो का ढेर लग जाता है। हजारों की तादात में मन्नती लोग यहां झण्डा चढ़ाने आते हैं।
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बच्चों का मुण्डन कराने की है परंपरा
ऐसी मान्यता है कि यहां बच्चों का मुंडन कराने से उन पर प्रेत बाधा का साया दूर रहता है। इसी वजह से दूर दराज इलाकों से लोग नवरात्रि शुरू होते अपने नौनिहालों का मुंडन संस्कार कराने आने लगते हैं। अपने बच्चों को नजर लगने पर लोग बाबा की फूंक डलवाने आते हैं।
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