लखनऊ, (एस.वी.सिंह उजागर)। प्रदेश की योगी सरकार जिस मंशा और पारदर्शिता के साथ कार्य करने का प्रयास कर रही है अद्योमानक फार्मा कंपनियां उस इमेज में पलीता लगा रहीं हैं।
बुजुबान पशुओं और इंसानों की जिंदगी से खेलने वाले यह ड्रग निर्माता भले ही दर्द निवारक का चोला पहने हों लेकिन इनके उत्पादों की सेंपलिंग रिपोर्ट इन्हे हत्यारों की कतार में खड़ा कर देती है। बीमार पशु को बचाने के लिए हम अनजाने में जो सब स्टेण्डर्ड औषधि दे रहे हैं वह उसकी जान बचायेगी या और बीमार कर देगी इसका जवाब हमें ढूंढना ही होगा।
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अधिकारी इस समस्या को लेकर पहले भी जता चुके चिंता
वरिष्ठ आईएएस और प्रदेश सरकार के तत्कालीन सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्र के 23 अक्टूबर 2009 को जारी आदेश के कुछ बिन्दुओं को हम यहां पढ़ना चाहेंगे। जिसमें उन्होने अद्योमानक ड्रग और खाद्य निर्माताओं पर समय से कार्यवाही न होने पर चिंता व्यक्त की थी।
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श्री मिश्र ने अपने आदेश के एक पैरा में लिखा-
“खाद्य एवं औषधि आम जनता के जीवन एवं स्वास्थ्य से जुड़े हुए पदार्थ हैं। नकली, अद्योमानक मिथ्याछाप औषधियों एवं अपमिश्रित खाद्य पदार्थो के कारण जन स्वास्थ्य पर सीधा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः खाद्य एवं औषधि में अपमिश्रित अथवा नकली पदार्थों के निर्माण में लिप्त अपराधियों के विरूद्ध कठोर और प्रभावी कार्यवाही तत्परता से किया जाना जनहित में अतयंत आवश्यक है। यदि ऐसे तत्वों को सीघ्र सजा नही मिलती है, तो विभाग द्वारा लिए जा रहे सैंपल का कोई प्रभाव उन पर नही पड़ता है।”
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इसके लिए वाकायदा उन्होने जनपद स्तर पर ऐसे वादों के निस्तारण के हेतु एक अभियोजन अधिकारी तथा एक शासकीय अधिवक्ता नामित करने के लिए कहा था। लेकिन चीटी की गति से चलने वाली विभागीय प्रक्रिया कभी शासन और सरकार की मंशा को पूरा नही होने देती।
दुर्गा शंकर मिश्र ने जब यह बात कही थी उस समय प्रदेश के विभिन्न न्यायालयों में खाद्य अपमिश्रित, एवं नकली, अपमिश्रित अद्योमान एवं मिथ्याछाप औषधियों से संबन्धित 3,10,000 अपराधिक मामले लंवित चल रहे थे। आज यह संख्या उससे भी कहीं ऊपर पहुंच चुकी होगी।
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श्री मिश्र द्वारा यह कहना कि वादों का शीघ्र निस्तारण न होने के कारण लंवित वादों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है तथा औषधि से संबन्धित वादों के अभियुक्तों को दोषी सिद्ध कराकर उन्हे दण्डित कराया जाना संभव नही हो पा रहा है।
इस शासनादेश को जारी हुए आज 13 साल हो चुके हैं लेकिन स्थित वहीं की वहीं हैं। अद्योमानक और मिथ्याछाप की आरोपी कंपनियों पर विभागीय अधिकारियों की शिथिल पैरवी उन्हे अदालत में दोषी साबित करने की बजाय बाइज्जत बरी करा देती हैं और वह बड़ी शान से कॉलर ऊंचा करके विभाग में फिर सप्लाई देने लग जाती है।
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उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग ने अद्योमानक दवा सप्लाई करने वालों पर नकेल कसना शुरू कर दिया है। हलांकि अभी कोई भी अधिकारी अधिकृत वर्जन देने से बच रहा है क्यों अधोमानक की आरोपी कंपनियां नियमों की शिथिलता का फायदा उठाकर होने वाली कार्यवाही से खुद को बचा लेती हैं।
ड्रग निर्माता कंपनी सेफकॉन लाइफ साइंसेस का मामला इन दिनों खूब चर्चा में है। अधिकारिक सूत्रों के हवाले से मिली सूचना के अनुसार इस कंपनी का लगातार तीसरा सैंपल फेल हुआ है।
उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग इस तरह करता है कार्यवाही
- यदि किसी कंपनी का कोई सैंपल अद्योमानक पाया जाता है तो उसे नोटिश जारी कर उससे इस संबन्ध में सपष्टीकरण मांगा जाता है।
- यदि कंपनी सैंपल अद्योमानक होने का उचित स्प्ष्टीकरण नही नही दे पाती तो उसका वह प्रोडक्ट विभाग में एक साल के लिए डीबार्ड कर दिया जाता है।
- यदि फिर उसी कंपनी की कोई दवा अद्योमानक पायी जाती है, तो कंपनी को 1 अथवा 2 साल के लिए विभाग में दवा सप्लाई के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है।
क्या कहते हैं खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के नियम
- विभाग के ड्रग इंस्पेक्टर रेंडेमली दवाओं का सैंपल मेडिकल स्टोर, वेयर हाऊस या विभागों के अस्पतालों से लेते हैं।
- कलैक्ट किये गये संेपल उ0प्र0 सरकार की राजकीय विषलेशक प्रयोग शाला में जांच के लिए भेजे जाते हैं।
- ड्रग का सेंपल अद्योमानक पाये जाने पर खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग सेंपलिंग स्थान से लेकर ड्रग सप्लायर और उसके निर्माता कंपनी तक पहुंचने के लिए विभिन्न तरह की कड़ियों को जोड़ता है।
- कंपनी का पता चलने पर विभाग सप्लायर व ड्रग निर्माता कंपनी को नोटिश कर अपना सपष्टीकरण देने के लिए कहता है
- कंपनी राजकीय विषलेशक प्रयोगशाला की रिपोर्ट को कोर्ट में चेलेंज कर अपने प्रोडक्ट को उच्च लैब में भेज सकता है।
- बड़ी लैब से यदि उसी सैंपल की रिपोर्ट ठीक आ जाती है तो तो कंपनी उस रिपोर्ट को खाद्य एवं औषधि विभाग को सब्मिट कर देती है। विभाग फिर कंपनी पर कोई कार्यवाही नही कर सकता।
- यदि उच्च लैब की रिपोर्ट में भी वह सेंपल अद्योमानक पाया जाता है, ऐसी अवस्था में विभाग ड्रग निर्माता कंपनी पर एफआईआर दर्ज करा सकता है तथा उसका ड्रग लाइसेंस तक सस्पेंड कर सकता है।
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